भोपाल। गुजरात सरकार से बब्बर शेर (Asiatic Lion) लेने के लिए राज्य सरकार एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट जाएगी। सरकार ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। कोर्ट को यह भी बताया जाएगा कि एक-एक कर गुजरात सरकार की ज्यादातर शर्तें पूरी कर दी गई हैं, फिर भी शेर नहीं दिए जा रहे हैं। जबकि पार्क को विकसित करने से लेकर उसकी देखरेख पर मप्र सरकार को बड़ी रकम खर्च करनी पड़ रही है। साथ ही शेरों को शिफ्ट करने के पीछे जो उद्देश्य था, वह भी पूरा नहीं हो पा रहा है।

श्योपुर जिले का कुनो पालपुर नेशनल पार्क 27 साल से शेरों का इंतजार कर रहा है। राज्य सरकार वह तमाम जरूरी शर्तें पूरी कर चुकी है, जो सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमेटी और गुजरात सरकार ने उसके सामने रखी थीं। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून के वैज्ञानिक भी कुनो पालपुर में शेरों के लिए की गई व्यवस्थाओं को पर्याप्त बता रहे हैं। फिर भी शेरों को मप्र लाने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो रही है।

इस स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने फिर से कोर्ट जाने का मन बनाया है, क्योंकि जिस खतरे को लेकर 1994 में शेरों को गुजरात से बाहर दूसरे राज्यों में शिफ्ट करने की रणनीति बनी थी, पिछले साल गिर अभयारण्य में वह हालात भी बन चुके हैं। वहां पिछले साल दो दर्जन से ज्यादा शेरों की मौत संक्रमण से हो चुकी है।

मप्र में सरकार बदलने से शेरों के आने की आस बढ़ गई है। प्रदेश में 15 साल से भाजपा की सरकार थी और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मप्र की शिवराज सरकार इस मामले में सख्ती नहीं दिखा पा रही थी।

अब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, जो हर हाल में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरा कराने की कोशिश करेगी। कोर्ट ने 2013 में मप्र को शेर देने का फैसला सुना दिया था। तब से गुजरात के वन अफसर इस मामले को उलझाए हुए हैं। एम्पॉवर्ड कमेटी (सशक्त समिति) हमेशा नई शर्तें रख देती है।

शेरों के लिए कुनो पालपुर पूरी तरह से तैयार है। शिफ्टिंग में बड़ी बाधा बताए जा रहे नेशनल पार्क का नोटिफिकेशन भी कर दिया गया है। अब हम केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के सामने अपनी बात रखेंगे।

– उमंग सिंघार, वन मंत्री

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