सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकार द्वारा 10 फीसदी आरक्षण देने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट में इस बिल के खिलाफ याचिका दायर की गई है. एक एनजीओ द्वारा दायर की गई याचिका में संशोधित बिल को असंवैधानिक बताया गया है. याचिका में कहा गया है कि आर्थिक रूप से आरक्षण देना गैर संवैधानिक है, इसलिए संशोधित बिल को निरस्त किया जाए.

यूथ फॉर इक्वालिटी (youth for equality) नाम के एनजीओ ने याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय की गई है. उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से आरक्षण देना गलत है और ये सिर्फ सामान्य श्रेणी के लोगों को नहीं दिया जा सकता है.

याचिका में कहा गया है कि गैर-अनुदान प्राप्त संस्थाओं को आरक्षण की श्रेणी में रखना गलत है. याचिका में अपील की गई है कि इस बिल को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए. इसमें कहा गया है कि ये फैसला वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए किया गया है.

आपको बता दें कि बुधवार को ही 10 घंटे की लंबी बहस के बाद राज्यसभा में संशोधित बिल पास हुआ है. ये बिल लोकसभा में पहले ही पास हो चुका है. अब इस बिल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा.

गौरतलब है कि कई राजनीतिक दलों ने इस बिल को लाने की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा है. हालांकि, अधिकतर विपक्षी पार्टियों ने लोकसभा और राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में ही वोट दिया है.

आपको बता दें कि यूथ फॉर इक्वॉलिटी एक संस्था है जिसे कई स्टूडेंट और प्रोफेशनल मिलकर चलाते हैं. इससे पहले भी ये NGO शिक्षा में सुधार, राजनीति में सुधार जैसे कई मसलों पर कैंपेन चला चुकी है.

गौरतलब है कि इस बिल के पास होते ही अभी तक जिन जातियों को आरक्षण नहीं मिलता था, वह इस आरक्षण की श्रेणी में आ गए हैं. हालांकि, उन्हें आर्थिक आधार पर सिर्फ 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा. सरकार का दावा है कि इस आरक्षण से अभी तक SC/ST, OBC को जो 49.5 फीसदी आरक्षण मिलता है उसपर कोई असर नहीं पड़ेगा.

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