पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में बढ़ती असहिष्णुता और मानवाधिकारों का हनन और देश का अधिकांश धन अमीरों की जेब में जाने से गरीबों के बीच बढ़ती खाई पर चिंता जाहिर की.
दिल्ली में ‘शांति, सद्भाव और प्रसन्नता की ओर : संक्रमण से परिवर्तन’ विषय पर शुक्रवार को आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए मुखर्जी ने कहा, ‘जिस देश ने दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और सहिष्णुता का सभ्यतामूलक लोकाचार, स्वीकार्यता और क्षमा की अवधारणा प्रदान की वहां अब बढ़ती असहिष्णुता, गुस्से का इजहार और मानवाधिकरों का अतिक्रमण की खबरें आ रही हैं.’
ऐसा नहीं है कि प्रणब मुखर्जी ने पहली बार असहिष्णुता का जिक्र किया है. वह पहले भी कई दफा इशारों-इशारों में बढ़ती असहिष्णुता पर निराशा जता चुके हैं. इस समारोह का आयोजन प्रणब मुखर्जी फाउंडेशन और सेंटर फॉर रिसर्च फॉर रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट द्वारा किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘जब राष्ट्र बहुलवाद और सहिष्णुता का स्वागत करता है और विभिन्न समुदायों में सद्भाव को प्रोत्साहन देता है, हम नफरत के जहर को साफ करते हैं और अपने दैनिक जीवन में ईर्ष्या और आक्रामकता को दूर करते हैं तो वहां शांति और भाईचारे की भावना आती है.’
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘उन देशों में अधिक खुशहाली होती है जो अपने निवासियों के लिए मूलभूत सुविधाएं और संसाधन सुनिश्चित करते हैं, अधिक सुरक्षा देते हैं, स्वायत्ता प्रदान करते हैं और लोगों की सूचनाओं तक पहुंच होती है. जहां व्यक्तिगत सुरक्षा की गारंटी होती है और लोकतंत्र सुरक्षित होता है वहां लोग अधिक खुश रहते हैं.’
मुखर्जी ने कहा, ‘आर्थिक दशाओं की परवाह किए बगैर लोक शांति के वातावरण में खुश रहते हैं.’ आंकड़ों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘अगर इन आंकड़े की उपेक्षा की जाएगी तो प्रगतिशील अर्थव्यवस्था में भी हमारी खुशियां कम हो जाएंगी. हमें विकास के प्रतिमान पर शीघ्र ध्यान देने की जरूरत है.’
शांति-एकता के संदेश को याद करना आवश्यक
गुरुनानक देव की 549वीं जयंती पर उनको श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि आज उनके शांति और एकता के संदेश को याद करना आवश्यक है. उन्होंने चाणक्य की सूक्ति को याद करते हुए कहा कि प्रजा की खुशी में ही राजा की खुशी निहित होती है. ऋग्वेद में कहा गया है कि हमारे बीच एकता हो, स्वर में संसक्ति और सोच में समता हो.
मुखर्जी ने सवाल किया कि क्या संविधान की प्रस्तावना का अनुपालन हो रहा है जो सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक न्याय, अभिव्यक्ति की आजादी और चिंतन, दर्जा और अवसर की समानता की गारंटी देती है. उन्होंने कहा कि आम आदमी की प्रसन्नता की रैंकिंग में भारत 113वें स्थान पर है जबकि भूखों की सूचकांक में भारत का दर्जा 119वां है. इसी प्रकार की स्थिति कुपोषण, खुदकुशी, असमानता और आर्थिक स्वतंत्रता की रेटिंग में है.
अनुभवी व्यक्ति का सुझाव स्वीकार
पूर्व राष्ट्रपति के बयान पर केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि कभी-कभी कोई अनुभवी व्यक्ति अगर सुझाव देता है तो उसको स्वीकार करना चाहिए. प्रणब दा काबिल और अनुभवी राजनेता रहे हैं उन्हें भी मालूम है कि सहिष्णुता देश का डीएनए है. जो सौहार्द है वो देश की संस्कृति है. देश के संस्कार और संस्करिता को न कोई कमजोर कर सका है और न कमजोर हो पाएगी.
देश की संस्थाओं के पतन वाले बयान पर नकवी ने कहा कि 4 साल में मोदी के नेतृत्व में संवैधानिक संस्थाएं पारदर्शी और मजबूत हुई हैं. प्रणब दा के बयान को मैं सियासी रूप से नहीं देखता, कभी-कभी अनुभवी व्यक्ति कोई बयान देता है तो आपको पसंद हो या न पसंद हो आपको स्वीकार करना होता है.
3 साल पहले भी जताई थी निराशा
3 साल पहले अक्टूबर में भी राष्ट्रपति रहने के दौरान प्रणब मुखर्जी ने देश के हालात पर निराशा जताई थी. तब उन्होंने कहा था कि असहिष्णुता से भारी नुकसान हो रहा है. सबको आत्मसात करने और सहिष्णुता की अपनी शक्ति के कारण ही भारत समृद्ध हुआ है. विविधता भारत की ताकत है और हमें हर कीमत पर इसकी रक्षा करनी है.
राष्ट्रपति पद से हटने के बाद इस साल जून में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक कार्यक्रम में शरीक होते कहा था, ‘नफरत और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीय पहचान खतरे में पड़ेगी. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि भारतीय राष्ट्रवाद में हर तरह की विविधता के लिए जगह है. भारत के राष्ट्रवाद में सारे लोग समाहित हैं. इसमें जाति, मजहब, नस्ल और भाषा के आधार पर कोई भेद नहीं है.’
तब उन्होंने कहा था, ‘हम सहमत हो सकते हैं, असहमत हो सकते हैं, लेकिन हम वैचारिक विविधता को दबा नहीं सकते. 50 सालों से ज्यादा के सार्वजनिक जीवन बीताने के बाद मैं कह रहा हूं कि बहुलतावाद, सहिष्णुता, मिलीजुली संस्कृति, बहुभाषिकता ही हमारे देश की आत्मा है.’