श्रीनगर : जम्मू कश्मीर में मंगलवार से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) नेशनल कांफ्रेंस(नेकां) और कांग्रेस के गठजोड़ से सरकार बनाने की शुरू हुई कोशिशें परवान चढ़ती इससे पहले ही बुधवार रात राजभवन ने राज्य विधानसभा भंग करने का आदेश जारी कर दिया। इसी के साथ सरकार बनाने की संभावना खत्म हो गई और अब चुनाव ही विकल्प बचा है।
भाजपा को जम्मू-कश्मीर में दोबारा सत्तासीन होने से रोकने के लिए एक-दूसरे की कट्टर विरोधी पीडीपी, नेकां और कांग्रेस के बीच गठबंधन सरकार बनाने पर सहमति बन चुकी थीं। पीडीपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए फैक्स भी भेज दिया था। उन्होंने 56 विधायकों का समर्थन होने का दावा किया था। लेकिन फैक्स राजभवन को रिसीव नहीं हुआ। महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर जानकारी दी कि आश्चर्यजनक रूप से फैक्स राजभवन को रिसीव नहीं हुआ, फोन पर भी राज्यपाल सत्यपाल मलिक से संपर्क करने का प्रयास किया गया लेकिन वह उपलब्ध नहीं हो पाए।
इसबीच खबर आई कि राज्यपाल केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ से मिलने दिल्ली रवाना हो गए। रात होते होते विधानसभा भंग होने का आदेश जारी कर दिया गया। सरकार बनाने की कवायद से पैदा हुए नए राजनीतिक समीकरणों के बीच पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन अपना लंदन दौरा बीच में ही छोड़ दिल्ली पहुंच गए। बुधवार देर शाम लोन ने भी राज्यपाल को पत्र लिखकर भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया। मंगलवार से पीडीपी में बगावत की खबरों के बीच सियासी घटनाक्रम तेजी से बदला और तीनों दलों के एकसाथ आने की अटकलें शुरू हो गई।
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने अपने करीबियों के जरिये नेकां नेतृत्व और कांग्रेस आलाकमान से संपर्क किया। इसके बाद बुधवार सुबह पीडीपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सईद अल्ताफ बुखारी ने नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला से मुलाकात की। इसी दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और सचिन पायलट से उमर अब्दुल्ला का कथित तौर पर संवाद हुआ। सैद्धांतिक तौर पर तीनों दल एक मंच पर जमा होकर सरकार बनाने के लिए सहमत हो गए।
यह है विधानसभा का गणित
87 सदस्यीय राज्य विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 44 विधायकों का समर्थन जरूरी है। भाजपा के पास 25 और सज्जाद गनी लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कांफ्रेंस के दो विधायक हैं। पीडीपी के 29, नेशनल कांफ्रेंस के 15 और कांग्रेस के 12 विधायकों के अलावा पांच अन्य विधायक हैं। नेकां, पीडीपी व कांग्रेस अगर आपस में मिलें तो कुल विधायक 56 होंगे। इनमें अगर पीडीपी के पांच बागी विधायकों को निकाला जाए तो 51 विधायक रहेंगे, जो सरकार बनाने के लिए जरूरी 44 विधायकों से ज्यादा हैं।
राज्य में इस वर्ष 16 जून को भाजपा के समर्थन वापस लेने से मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार गिर गई थी। इसके बाद से ही राज्यपाल शासन लागू है। सरकार का गठन न होने की स्थिति में 19 दिसंबर को राज्यपाल शासन के छह माह पूरे होते ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता, क्योंकि राज्य संविधान के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में छह माह से ज्यादा समय तक राज्यपाल शासन लागू नहीं रखा जा सकता।
स्पष्ट बहुमत वाली सरकार के गठन के लिए भंग की विधानसभा: राज्यपाल
राजभवन ने बुधवार देर रात राज्यपाल की तरफ से एक बयान जारी कर कहा कि जम्मू-कश्मीर में स्थिरता व सुरक्षा का माहौल बनाने और स्पष्ट बहुमत वाली सरकार के गठन के लिए उचित समय पर चुनाव कराने के इरादे से ही मौजूदा विधानसभा को भंग किया गया है। परस्पर विरोधी विचारधारा के राजनीतिक दलों द्वारा आपस में मिलकर एक स्थिर सरकार देना असंभव नजर आया।
पिछले अनुभव के आधार पर पाया गया कि ये दल एक काम करने वाली सरकार बनाने से कहीं ज्यादा सत्ता प्राप्त करने के लिए आपस में जुड़ रहे हैं। इसके साथ ही परस्पर विरोधी विचारधारा वाले दलों द्वारा आपस में मिलकर सरकार बनाने के लिए बड़े पैमाने पर विधायकों की खरीद-फरोख्त और पैसे के लेनदेन की खबरें भी चल रही थीं। ये गतिविधियां लोकतंत्र के लिए जहां घातक हैं, वहीं राजनीतिक माहौल को भी बिगाड़ती हैं। ऐसे हालात में जहां विभिन्न दल बहुमत का दावा कर रहे हों, लंबे समय तक एक स्थिर सरकार के बने रहने पर हमेशा संशय रहता है।
जम्मू- कश्मीर में नाजुक सुरक्षा परिदृश्य के मद्देनजर आतंकरोधी अभियानों में जुटे सुरक्षाबलों के लिए बेहतर माहौल चाहिए। राजभवन की ओर से कहा गया कि राज्यपाल ने सभी परिस्थितियों का संज्ञान लेते हुए मौजूदा विधानसभा को भंग किया है।