मिजाजीलाल जैन
भोपाल। प्रदेश में एचआईवी/एड्स मरीजों के इलाज को लेकर न तो केन्द्र सरकार गंभीर है न ही प्रदेश सरकार। इसका ताजा उदाहरण एंटी रेट्रोवायरल थैरेपी (एआरटी) सेंटर को लेकर है। प्रदेश में चार साल के भीतर मौजूदा 18 एआरटी सेंटरों में 9 हजार मरीज बढ़ गए। पहले 15 हजार मरीज इलाज करा रहे थे। अब यह आंकड़ा 24 हजार तक पहुंच गया है। इसके बावजूद इन सालों में प्रदेश में एक भी एआरटी सेंटर खोलने केन्द्र सरकार ने मंजूरी नहीं दी है।

हाल ही में जारी हुए 2017-24 के एक्शन प्लान में प्रदेश में एक भी नया एआरटी सेंटर खोलने की मंजूरी नहीं दी गई। इस वजह से मरीजों को बहुत परेशानी हो रही है। करीब 60 फीसदी मरीजों को 100 से 200 किमी दूर इलाज के लिए जाना पड़ रहा है।

यह होता है एआरटी सेंटर में

यहां एचआईवी से संक्रमित लोगों का पंजीयन किया जाता है। इसके बाद एक कार्ड दिया जाता है। बीमारी की गंभीरता के अनुसार उन्हें एक से दो महीने के बीच बुलाया जाता है। इस दौरान उनकी सभी जरूरी जांचें कराई जाती हैं। प्रतिरोधक क्षमता देखने के लिए सीडी-4 टेस्ट कराया जाता है। जरूरत पर एनआईवी पुणे से वायरल लोड टेस्ट भी कराया जाता है। मरीजों को सभी दवाएं यहां से मुफ्त दी जाती हैं। इनमें हाई एंटीबायोटिक भी शामिल हैं। एआरटी सेंटरों में कई मरीज 15 साल से भी ज्यादा समय से नियमित इलाज कराकर स्वस्थ हैं।

नए सेंटर नहीं खुलने से यह परेशानी

– मौजूदा 18 सेंटरों लोड बढ़ता जा रहा है। इन सेंटर्स में जगह व स्टाफ की कमी होने से मरीजों को इलाज के लिए बहुत इंतजार करना पड़ता है।

– मरीजों को काफी दूर से यात्रा कर एआरटी सेंटर पहुंचना होता है। ऐसे में डॉक्टर तो मिल जाते हैं पर उनकी जांचें नहीं हो पाती।

– दूरी के फेर में कई मरीज तय तारीख पर एआरटी सेंटर नहीं पहुंचते।

-बिना एआरटी सेंटर वाले दूसरे जिला अस्पतालों के मरीजों को एचआईवी/एड्स मरीजों को विशेष सलाह नहीं मिल पाती।

अभी यहां पर है एआटी सेंटर

-सरकारी मेडिकल कॉलेज- भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा और सागर

-जिला अस्पताल- रीवा, उज्जैन, खंडवा, मंदसौर, सिवनी, नीमच, धार, बड़वानी, बुरहानपुर, रतलाम, बालाघाट, शिवपुरी व खरगोन।

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