भोपाल| सरकार नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य सरकार पर है कि अनुसूचित जाति/ जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण का लाभ दिया जाए या नहीं| चुनाव से ठीक पहले आये इस निर्णय के बाद सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है| अजाक्स ने फैसले का स्वागत करते हुए तत्काल आदेश जारी करने की मांग की है| वहीं सपाक्स का कहना है कि मप्र उच्च न्यायालय ने सरकार के पदोन्नति में आरक्षण के नियमों को खारिज कर दिया था एवं आसान असंवैधानिक नियमों के आधार पर अनुसूचित जाति/ जनजाति को पदोन्नत करने के आदेश दिए थे। लेकिन सरकार ने निर्णय का पालन न कर सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। कोर्ट का निर्णय न मानते हुए अनावश्यक रूप से पदोन्नतियां बाधित रखी। विगत ढाई वर्षों से हजारों सेवक बिना पदोन्नति सेवानिवृत हो चुके हैं। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है तो उम्मीद है इस निर्णय से सरकार जागेगी और यथोचित निर्णय लेकर कार्यवाही सुनिश्चित करेगी।
विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार ने वर्ष 2006 के एम नागराज प्रकरण पर आपत्ति लेते हुए यह मांग की थी कि यह निर्णय सही नहीं है और संविधान पीठ को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से अपने निर्णय में स्पष्ट कहा कि एम नागराज प्रकरण में पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है और इसके लिए प्रकरण 7 जजों की पीठ में ले जाने की आवश्यकता नहीं है।
-पदोन्नति में आरक्षण दिया जाना संवैधानिक बाध्यता नहीं है।
-राज्य चाहे तो ऐसा कर सकता है लेकिन यह देखना होगा कि उस वर्ग के प्रतिनिधित्व के आंकड़े एकत्रित करना होंगे, जिन्हें पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिया जाना है।
-राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसा करने से प्रशासनिक दक्षताएं प्रभावित नहीं होंगी।
-एम नागराज प्रकरण में एक शर्त यह भी थी कि जिनको पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिया जाना है उनका पिछड़ापन स्थापित करना होगा। लेकिन पीठ ने इस बद्याता को इस आधार पर समाप्त कर दिया कि अनुच्छेद ३४१/ ३४२ में अनुसूचित जाति/ जनजाति पिछड़ी परिभाषित हैं।
-पीठ ने कहा कि यद्यपि अनुसूचित जाति/ जनजाति पिछड़ी परिभाषित हैं लेकिन पदोन्नति में आरक्षण के मामले में व्यक्ति विशेष पर क्रीमीलेयर लागू होगी, जैसा एम नागराज प्रकरण में स्थापित किया गया है।
-निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व से आशय आनुपातिक प्रतिनिधित्व से नहीं है। यहां तक कि उत्तरोत्तर उच्च पदों पर आरक्षण का प्रतिनिधित्व कम करना होगा।
इसी आधारों पर अब मप्र. के लंबित प्रकरण पर पुन: युगल पीठ में सुनवाई पूरी कर प्रकरण का अंतिम निराकरण किया जाएगा। सपाक का कहना है कि 30 अप्रैल 2016 को मप्र उच्च न्यायालय ने सरकार के पदोन्नति में आरक्षण के नियमों को खारिज कर दिया था एवं आसान असंवैधानिक नियमों के आधार पर अनुसूचित जाति/ जनजाति को पदोन्नत करने के आदेश दिए थे। राज्य सरकार ने निर्णय का पालन न कर सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। मुख्यमंत्री ने इतना ही नहीं, बिन बुलाए अजाक़्स के सम्मेलन में जाकर न सिर्फ भरपूर समर्थन की बात कही बल्कि प्रकरण लड़ने के लिए अजाक़्स को करोड़ों की आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराई।