भोपाल। देश में दुष्कर्म के सर्वाधिक मामलों के दाग को लेकर सुर्खियों में रहने वाला मप्र अब पीड़िताओं को त्वरित न्याय दिलाने के लिए चर्चा में है। मप्र में पिछले आठ माह में दुष्कर्म के 13 मामलों में जिला अदालतों ने आरोपितों को फांसी की सजा सुनाई है।

ज्यादती की घटनाओं में देश में इतनी तेजी से पुलिस जांच और उसके बाद कोर्ट की सुनवाई प्रक्रिया व फैसले किसी अन्य राज्य में नहीं दिए जा रहे हैं। गौरतलब है कि मप्र ने नाबालिग से दुष्कर्म के मामलों में दोषियों को फांसी की सजा का प्रस्ताव भी सबसे पहले केंद्र को भेजा था।

कटनी में घटना के 13 दिन के अंदर पीड़िता को न्याय मिलने व कोर्ट द्वारा 5 दिन लगातार सुनवाई कर फैसला सुनाने का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त के अपने भाषण में करते हुए त्वरित न्याय व्यवस्था का उदाहरण बताया था। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी अपने भाषण में ज्यादती के मामलों में त्वरित न्याय दिलाने का जिक्र किया था।

यह पहला अवसर था जब स्वतंत्रता दिवस के भाषणों में आपराधिक घटनाओं में न्याय व्यवस्था में सुधार का हवाला दिया गया हो। मप्र में महिलाओं के शोषण के मामलों में पिछले तीन माह में सागर जिला कोर्ट द्वारा सोमवार को फांसी की चौथी सजा सुनाई गई है। चारों मामले नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म के हैं, इनमें दो मामलों में ज्यादती के बाद आरोपियों द्वारा पीड़िताओं की हत्या कर दी गई थी।

लोक अभियोजन संचालनालय के महानिदेशक राजेंद्र कुमार के अनुसार प्रदेश की तस्वीर में बदलाव के पीछे टीम वर्क है। पुलिस के स्तर पर ऐसे मामलों की जांच में जहां विशेष रूप से तेजी लाई गई है, वहीं न्यायालयीन स्तर पर ऐसे मामलों को प्राथमिकता से सुना जा रहा है।

इसके साथ ही अभियोजन के स्तर पर मामलों में पीड़िता पक्ष मजबूती से रखने के लिए जहां लोक अभियोजकों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है, वहीं उनके काम की सतत निगरानी, अच्छे कार्य की सराहना और लापरवाही पर पूछताछ की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। इसके लिए एक एप तैयार किया गया है, जिस पर सभी लोक अभियोजक अपने दिन के कार्य की रिपोर्ट देते हैं।

इस रिपोर्ट के आधार पर हर माह सर्वश्रेष्ठ लोक अभियोजक का चयन इसी एप पर होता है, उसे फोटो के साथ डिस्प्ले किया जाता है। इस एप से लोक अभियोजकों में प्रतिस्पर्धा का भाव जागा है, वे अब अपने काम को बेहतर से बेहतर ढंग से कर रहे हैं। यही कारण है कि पहले जहां एक साल में दो से तीन मामलों में फैसले आया करते थे, वहीं अब 10-15 दिनों फैसले आ रहे हैं।

ऐसी हैवानियत की सजा सिर्फ फांसी है

हैवानियत की सजा सिर्फ फांसी है और राज्य सरकार ऐसे हैवानों को फांसी की सजा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। पिछले तीन महीनों में यह चौथा मामला है, जिसमें सागर जिले में बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के मामलों में न्यायालयों ने घटना के कुछ ही महीनों के भीतर सुनवाई खत्म कर मृत्युदंड की सजा दी है। – भूपेंद्र सिंह, गृहमंत्री, मप्र

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