मालदीव की चीन समर्थित अब्दुल्ला सरकार ने भारत को झटका देते हुए सैन्य हेलीकॉप्टर और सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कहा है। भारत के दो हेलीकॉप्टर और करीब 50 जवान इस वक्त मालदीव में हैं। मालदीव और भारत के बीच एक समझौते तहत उन्हें वहां भेजा गया था हालांकि यह समझौता जून में ही खत्म हो गया है। भारत में मालदीव के राजदूत अहमद मोहम्मद ने विदेश मंत्रालय से इन्हें वापस बुलाने के लिए कहा है।
मोहम्मद ने कहा कि भारत द्वारा प्रदान किए गए दो सैन्य हेलीकॉप्टर मुख्य रूप से चिकित्सा के लिए उपयोग किए जाते थे, लेकिन अब हमारे पास पर्याप्त साधन है इसलिए इनकी जरूरत नहीं है। भारत के लिए मालदीव में यह स्थिति काफी खराब मानी जा रही है। क्योंकि भारत और चीन मालदीव में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी हैं। एक तरफ जहां चीन हिंद महासागर द्वीप श्रृंखला में सड़क, पुल और बड़े हवाई अड्डे बनाने में जुटा है वहीं भारत दशकों से सैन्य और नागरिक सहायता पहुंचा रहा है। मालदीव में इसी साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को राजनीतिक बंदियों को छोड़ने का आदेश दिया था।
मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार करते हुए वहां 15 दिन का आपातकाल लागू कर दिया था। इस राजनीतिक संकट में मालदीव के विपक्षी नेता और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत से सैन्य दखल की गुहार लगाई थी। भारत ने भी मालदीव के हालात पर चिंता जताई थी, जिसके बाद दोनों देशों के बीच विवाद पैदा हो गया।
सवा चार लाख की आबादी वाला मालदीव भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। हिंद महासागर में होने की वजह से ये देश भारत के लिए बेहद अहम है। अब तक कोई भी देश हिंद महासागर में भारत के विपक्ष में नहीं खड़ा हुआ है। हालांकि बीते कुछ समय में चीन ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत यहां निवेश करना शुरू किया है। माना जा रहा है कि चीन मालदीव के बहाने भारत को घेरना चाहता है। उसने श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह पर भी निवेश किया है।