केंद्र सरकार निगरानी के लिए सोशल मीडिया हब बनाने के फैसले से पीछे हट गई है. सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद सरकार ने अपने हाथ पीछे खींचने का यह फैसला किया है. 13 जुलाई को पिछली सुनवाई में शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि यह ‘निगरानी राज’ बनाने जैसा होगा. प्रस्तावित सोशल मीडिया हब को लेकर आरोप लगाए गए थे कि यह नागरिकों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखने का हथियार बन सकता है.
केंद्र ने शुक्रवार को शीर्ष न्यायालय को सूचित किया कि सोशल मीडिया हब बनाने के प्रस्ताव वाली अधिसूचना वापस ले ली गई है और सरकार अपनी सोशल मीडिया नीति की गहन समीक्षा करेगी.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय पीठ ने केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की इस दलील पर विचार किया कि अधिसूचना वापस ली जा रही है. पीठ ने इसके बाद प्रस्तावित सोशल मीडिया हब को चुनौती देने वाली याचिका का निस्तारण कर दिया. वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि सरकार अपनी सोशल मीडिया नीति की पूरी तरह समीक्षा करेगी.
पीठ तृणमूल कांग्रेस की विधायक महुआ मोइत्रा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया है कि केंद्र की सोशल मीडिया हब नीति का नागरिकों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर निगरानी रखने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 13 जुलाई को सरकार से जानना चाहा था कि क्या मीडिया हब बनाने का उसका यह कदम नागरिकों के वॉट्सऐप संदेशों पर नजर रखने के लिए है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा था कि यह तो ‘निगरानी राज’ बनाने जैसा हो जाएगा.
तृणमूल कांग्रेस की विधायक ने सवाल किया था कि क्या सरकार वॉट्सऐप अथवा सोशल मीडिया के दूसरे मंचों पर नागरिकों के संदेशों पर नजर रखना चाहती है. इससे हर व्यक्ति की निजी जानकारी को भी सरकार खंगाल सकेगी. इसमें जिला स्तर तक सरकार डेटा को खंगाल सकेगी.
मोइत्रा ने याचिका में कहा था कि सरकार ने प्रस्ताव के लिए अनुरोध जारी किया है और वॉटसऐप, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे सभी सोशल मीडिया मंचों की 360 डिग्री निगरानी करने वाले सॉफ्टवेयर के लिए निविदा आमंत्रित किए हैं जो 20 अगस्त को खोले जाएंगे. शीर्ष अदालत ने 18 जून को सूचना मंत्रालय की इस दिशा में पहल पर रोक लगाने के अनुरोध पर शीघ्र सुनवाई से इंकार कर दिया था.