शादी का मतलब यह नहीं है कि पत्नी हमेशा शारीरिक संबंध के लिए तैयार बैठी है। शादी के बाद पति-पत्नी दोनों को शारीरिक संबंध के लिए इंकार करने का अधिकार है।
इसके लिए पत्नी के साथ शारीरिक बल का प्रयोग अपराध की श्रेणी में आता है। यह टिप्पणी वैवाहिक बलात्कार के एक मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की है।
हाईकोर्ट की मुख्य कार्यवाहक न्यायमूर्ति गीता मित्तल और सी हरी शंकर की पीठ के समक्ष इस मामले की सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि शादी जैसे रिश्ते में पति और पत्नी दोनों को शारीरिक संबंध बनाने का विरोध करने का अधिकार है।
मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि यह जरूरी नहीं कि शादी के बाद महिला सेक्स के लिए हर वक्त तैयार बैठी है। पत्नी के आरोपों का विरोध कर रहे पति से पीठ ने कहा कि उसे यह साबित करना होगा कि घटना के दौरान महिला की सहमति थी।
पीठ के समक्ष वैवाहिक बलात्कार के विरोध में मेन वेलफेयर ट्रस्ट एनजीओ ने दलील दी कि अपराध करने के लिए पति-पत्नी के यौन हिंसा और बल का प्रयोग महत्वपूर्ण तत्व होते है। लेकिन इससे यह साफ नहीं होता कि महिला के साथ बलात्कार किया गया।
वहीं, पीठ ने एनजीओ की दलील को खारिज करते हुए कहा कि यह कहना गलत होगा कि दुष्कर्म के लिए शारीरिक बल जरूरी है। यह जरूरी नहीं कि दुष्कर्म की घटना में जख्मों को देखा जाए।
पीठ ने कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में दुष्कर्म की परिभाषा पूरी तरह बदल चुकी है। पीठ ने कहा कि पति अगर पत्नी की वित्तीय घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए उसके सामने सेक्स की इच्छा पूर्ति की शर्त रखे तो यह भी दुष्कर्म की ही है। ऐसी स्थिति में महिला क्या करे जब उसपर खुद और बच्चों की जिम्मेदारी हो।