ग्वालियर। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नईदिल्ली के निर्देशानुसार एवं माननीय न्यायमूर्ति श्री हेमन्त गुप्ता, मुख्य न्यायाधिपति महोदय/मुख्य संरक्षक, मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जबलपुर के मार्गदर्शन में रविवार को उच्च न्यायालय खण्डपीठ, ग्वालियर में नेशनल लोक अदालत का आयोजन किया गया। न्यायमूर्ति श्री जे के महेश्वरी, न्यायाधिपति मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दीप प्रज्ज्वलित एवं माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नेशनल लोक अदालत का शुभारंभ किया गया। लोक अदालत में कुल 167 प्रकरणों का निपटारा आपसी सुलह – समझौते के आधार पर किया गया। साथ ही मोटर दुर्घटना क्लेम अपील प्रकरणों में पीड़ित पक्षकारों को 66 लाख 94 हजार रूपए की राशि अतिरिक्त क्षतिधन के रूप में दिलाई गई।
इस लोक अदालत में न्यायाधिपति श्री शील नागू एवं सीनियर एडवोकेट श्री के एस तोमर, न्यायाधिपति श्री एस ए धर्माधिकारी एवं सीनियर एडवोकेट श्री आर के शर्मा, न्यायाधिपति श्री विवेक अग्रवाल एवं सीनियर एडवोकेट श्री जे डी सूर्यवंशी तथा न्यायाधिपति श्री जी एस अहलूवालिया एवं सीनियर एडवोकेट श्री के बी चतुर्वेदी की न्यायपीठ द्वारा आपसी सहमति के आधार पर प्रकरणों का निपटारा किया गया। लोक अदालत में 44 मोटर दुर्घटना क्लेम अपील, 60 कन्टेम्प्ट पिटीशन, 29 एमसीसी, एक द्वितीय अपील, 29 डब्ल्यूपी, 2 प्रथम अपील, एक क्रिमिनल अपील, एक सिविल रिवीजन प्रकरण सहित कुल 167 प्रकरणों का निराकरण किया गया।

1983 से विचाराधीन एक प्रकरण का हुआ निराकरण
एक प्रकरण जिसमें श्रीमती सुनीता चौहान एवं विनायक राव एवं अन्य के मध्य सम्पत्ति को लेकर वर्ष 1983 से विवाद चल रहा था। उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर में 22 अप्रैल 2018 को आयोजित नेशनल लोक अदालत में दोनों पक्षों को समझाया गया कि मुकदमा लड़ने में आप सभी को 1983 से अभी तक अंतिम निर्णय नहीं मिल पाया और विवाद निराकरण नहीं हो पाया। उनको यह भी बताया गया कि आप सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं, अगर विवाद को आपस में निराकृत कर लेंगे तो समय एवं धन की बचत होगी और आपस में पारिवारिक संबंध में बने रहेंगे। पक्षकारगण ने माननीय न्यायालय की इस बात को माना और माननीय न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत करने वाली श्रीमती सुनीता चौहान ने द्वितीय अपील तथा शशिकांत के वारिसान तथा क्रॉस ऑब्जेक्शन प्रस्तुत करने वाली श्रीमती विमल पटनाकर ने अपनी-अपनी अपील और क्रॉस ऑब्जेक्शन वापस ले लिए और 1983 से चल रहे विवाद को पक्षकारों की आपसी सहमति के आधार पर निराकृत कर दिया गया।

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