नई दिल्ली: देश में पिछले तीन साल की तरह इस साल भी सामान्य बारिश होने की संभावना है। मौसम विभाग ने देश में इस साल मई के अंतिम या जून के पहले सप्ताह में मानसून के दस्तक देने की उम्मीद जताई है। मौसम विभाग के महानिदेशक के.जे. रमेश ने इस साल के लिए मौसम के दीर्घावधि पूर्वानुमान का ब्योरा देते हुए यह जानकारी दी। रमेश ने पहले चरण में अप्रैल से जून तक का पूर्वानुमान व्यक्त करते हुए संवाददाताओं को बताया कि इस साल दक्षिण पश्चिमी मानसून मई के अंतिम या जून के पहले सप्ताह में केरल तट पर दस्तक देगा। उन्होंने बताया कि मानसून के सक्रिय होने के बाद इसकी वास्तविक अनुमानित मात्रा के बारे में दूसरे चरण के दीर्घावधि पूर्वानुमान के अंतर्गत आगामी जून के दूसरे सप्ताह में बताया जा सकेगा। उसी समय देश के विभिन्न भागों में बारिश के स्तर का पूर्वानुमान घोषित किया जा सकेगा। रमेश ने बताया कि पहले चरण के पूर्वानुमान के मुताबिक इस साल सामान्य बारिश होने की संभावना 97 प्रतिशत है।

97 प्रतिशत तक होगी बारिश
वहीं औसत बारिश का स्तर सामान्य से कम रहने की संभावना बहुत कम है। उन्होंने बताया कि मानसून मिशन युग्मित जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली के आधार पर व्यक्त किए गए पूर्वानुमान के मुताबिक समूचे देश में मानसून ऋतु के दौरान जून से सितंबर के बीच होने वाली वर्षा का औसत स्तर 99 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है। जबकि प्रचालनात्मक सांख्यिकीय एनसेम्बल पूर्वानुमान प्रणाली के तहत इस अवधि में सामान्य बारिश की 97 प्रतिशत संभावना जताई गई है। विभिन्न श्रेणियों में पूर्वानुमान के मुताबिक जून से सितंबर के बीच बारिश का स्तर सामान्य (औसत वर्षा का स्तर 96 से 104 प्रतिशत) रहने की संभाव्यता 42 प्रतिशत और सामान्य से अधिक (104 से 110 प्रतिशत) रहने की संभाव्यता 12 प्रतिशत रहने का पूर्वानुमान है। जबकि सामान्य से कम श्रेणी (90 से 96 प्रतिशत) की संभाव्यता 30 प्रतिशत और न्यून श्रेणी (90 प्रतिशत से कम) की संभाव्यता मात्र 14 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

सामान्य रहेगा मानसून
सुरेश ने स्पष्ट किया कि पांचों श्रेणियों के पूर्वानुमान की संभाव्यता के मद्देनजर इस साल भी लगातार तीसरे साल बारिश का स्तर सामान्य रहने की उम्मीद है जबकि न्यून वर्षा की कम संभावना है। औसत बारिश सामान्य के स्तर पर ही बरकरार रहने के कारण संबंधी सवाल पर रमेश ने कहा कि प्रशांत महासागर और हिंद महासागर में समुद्र सतह का तापमान अधिक होने, खासकर प्रशांत महासागर में अल नीनो या ला निना की स्थितियां भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून को प्रबल रूप से प्रभावित करने के कारण बारिश का स्तर पिछले सालों की तरह यथावत बना हुआ है। उल्लेखनीय है पिछले सालों में देश में औसत वर्षा का स्तर 89 सेंमी था। रमेश ने बताया कि अत्याधुनिक पद्धतियों से मौसम के पूर्वानुमान के आंकलन को त्रुटिरहित बनाने में प्रभावी मदद मिली है। इसके परिणामस्वरूप साल 2007 से 2017 की अवधि में पूर्वानुमान में त्रुटि का स्तर घटकर 5.95 प्रतिशत पर आ गया। इससे पहले के सालों में यह नौ प्रतिशत तक रहता था।

बाजार पर भी अच्छे असर की उम्मीद
देश में करीब 45 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र है और शेष भूमि पर वर्षा आधारित खेती की जाती है जिसके लिए मानसून का सामान्य रहना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। देश में कृषि क्षेत्र में 40 से 45 प्रतिशत यांत्रिकरण हुआ है और मानसून अनुकूल होने से इस क्षेत्र को लाभ होने की आशा है। बाजार पर भी इसका अच्छा असर होने की उम्मीद है।

मौसम विभाग के अनुसार, 90 प्रतिशत से कम वर्षा को बहुत कम माना जाता है जबकि 95 प्रतिशत को सामान्य से कम माना जाता है। इसी प्रकार 96 प्रतिशत से 104 प्रतिशत को सामान्य मानसून तथा 105 से 110 प्रतिशत को सामान्य से अधिक माना जाता है। पिछले साल कुल क्षेत्र के 72 प्रतिशत हिस्सें में सामान्य वर्षा हुई थी जबकि 13 प्रतिशत में अधिक और 15 प्रतिशत में सामान्य से कम वर्षा हुई थी।

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