हर साल 22 मार्च को पूरी दुनिया में विश्व जल दिवस मनाया जाता है। जल है तो जीवन है! जल है तो कल है!! जल है तो आज है!!! आदि ये ऐसे पूर्ण सानुप्रासिक वाक्य हैं जो अपनी सार्थकता में पूरी धरती के जीवन को समेटे हुए हैं। जल प्रकृति का सुंदर और सर्व उपयोगी अनमोल उपहार है। इसके स्पर्श मात्र से चेतना स्फुरित होने लगती है। जल बिन जीवन की कल्पना अद्वितीय कही जा सकती है।

विश्व में सृजन से लेकर संचालन, परिवर्धन एवं संर्वधन में इसकी अहम् भूमिका है। जीवन में प्रकृति द्वारा प्रदत्त जल का कोई विकल्प नहीं है। हांलाकि बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण वनों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते प्रदूषण, वर्षाजल एवं परंपरागत जल स्त्रेतों के समुचित प्रबंधन व संरक्षण का अभाव, भूमिगत जल के पुनर्भरण का अभाव आदि अनेक समसामयिक समस्याओं ने विश्व में जलाभाव को गंभीर तो किया ही है पर इससे अधिक भयानक तो मानव के द्वारा ही जल के विवेकहीन प्रयोग ने मौजूदा हालात को विकराल एवं चिंतनीय बना दिया है।

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मानव समाज में गिरते जीवन मूल्य की तरह दिनों दिन भूजल स्रोत नीचे की ओर जा रहा है। प्रतिवर्ष जलस्तर एक से डेढ़ प्रतिशत नीचे जा रहा है। 21वीं सदी में विश्व में कई कीर्तिमान स्थापित किये जा रहे हैं पर आज देश के अनेक गांवों में पानी उपलब्ध नहीं है। अकेले भारत में वर्षा के 15 प्रतिशत जल का उपयोग हो पाता है, शेष बहकर समुद्र में चला जाता है। वैसे भी भारत जल के वैश्विक स्रोतों का सबसे बडा उपभोक्ता है।

प्रदूषित जल की वजह से प्रतिवर्ष 2.5 करोड़ से अधिक लोगों की मृत्यु
अत: उसे उचित प्रबंधन क्रियान्वयन पर अमल करना अति आवश्यक है क्योंकि इसके विपरीत इजराइल ऐसा देश है जहां 25 सेमी. से भी कम वर्षा होती है किंतु वहां की कुशल जलप्रबंधन की तकनीक अधिक विकसित एवं क्रियान्वित है जिसके कारण जल का एक भी बूंद व्यर्थ नहीं जाता है। प्रदूषित जल की वजह से प्रतिवर्ष 2.5 करोड़ से अधिक लोगों की मृत्यु हो जाती है।

विश्व जल दिवस मनाए जाने की सार्थकता
15 करोड़ घरेलू महिलाएं 9 से 10 किलोमीटर तक जल प्रबंध के लिए यात्रा करती हैं जिनके श्रम का मूल्य 10 करोड़ रुपए से अधिक है। ऐसे मेें जल के महत्व के प्रति जागरुकता उत्पन्न करने के लिए 22 मार्च को प्रतिवर्ष यूनाइटेड नेशन एसेबली द्वारा विश्व जल दिवस मनाए जाने की सार्थकता और भी महती हो जाती है। इसी के तहत 2018 में जल के लिए प्रकृति के आधार पर समाधान विषय को लेकर गहन विचार-विमर्श प्रारंभ हो चुका है।

भूमंडल पर अभी 13 सौ मिलियन धन मीटर जल मौजूद
उचित प्रबंधन एंव संचालन के अभाव में यह चौकाने वाली बात भी है कि धरती पर जितनी वर्षा प्रतिवर्ष होती है उससे 10 हजार से 12 हजार मिलियन हेक्टेयर मीटर पानी प्राप्त होता है और इस भूमंडल पर अभी 13 सौ मिलियन धन मीटर जल मौजूद है। बावजूद इसके पानी के लिए गर्मी के दिनों में मारा–मारी भी भयानक स्थिति निर्मित हो जाती है।

‘डे–जीरों नीति’-पानी का प्रावधान
अभी–अभी ताजा खबर है कि दक्षिण अफ्रीका के कैपटाउन शहर में सूखे की खतरनाक स्थिति को देखते हुए ‘डे–जीरों नीति’ के तहत नलों से पानी आपूर्ति बंद कर दी गई है। सप्ताह में दो से अधिक बार नहाने में पाबंदी लगा दी गई है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए 25 लीटर पानी का प्रावधान बनाया जा रहा है। यदि ऐसी स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं कि अगला विश्व युद्ध केवल पानी के लिए हो।

सूखते भू–जल स्त्रोत को बचाया जा सकता है
अत: इस संकट से उबरने के लिए जल के लिए प्रकृति के आधार पर समाधान यह है कि मानसूनी वर्षा से 75 प्रतिशत से अधिक जल का वाटर हार्वेस्टिंग द्वारा पुनर्भरण एवं संरक्षण करके सूखते भू–जल स्त्रोत को बचाया जा सकता है। परंतु उचित मानसूनी वर्षा के लिए सघन वन निर्माण संवर्धन व संरक्षण भी अति आवश्यक है। केवल छतों पर बगीचों का निर्माण कर उचित पैदावार लेकर कुछ समय तक अपने को भुलावा दिया जा सकता है पर यह स्थायी समाधान नहीं है।

भारत देश की 150 सूखती और प्रदूषित नदियों की भयावह स्थिति
ऐसे ही जिन क्षेत्रें की हवा में नमी है पायी जाती है- उसके ओस के बूंदों को पानी के रूप में परिवर्तित कर संरक्षण करना भी एक कारगार उद्यम साबित हो सकता है। नदियां मीठे जल का अपरिमित भंडार होती है। वर्तमान में विश्व के एक बडे राष्ट्र भारत देश की 150 सूखती और प्रदूषित नदियों की भयावह स्थिति से हम सब वाकिफ हैं। वहीं परंपरागत तालाबों- कुओं की घोर अपेक्षा हुई है जो जल संग्रहण के सम्पन्न साधन थे।

जल के लिए प्रकृति के आधार पर उचित समाधान
यदि संपूर्ण भू-भाग के 3 प्रतिशत एरिया में तालाब और कुएं का निर्माण हो तो वर्षों के 24 प्रतिशत से अधिक शुद्ध जल को संग्रहित किया जा सकता है। साथ ही इसकी शुद्धता और पवित्रता की गारंटी लिए पुख्ता प्रबंधन और संचालन द्वारा यह कम बजट वाला सस्ता, सुंदर, टिकाऊ जल के लिए प्रकृति के आधार पर उचित समाधान है। इस पर भी नहले में दहले वाली बात होगी कि मुढ़ों प्रकृति की ओर, बढ़ों मनुष्यता की ओर के कथ्य को व्यक्तिगत रूप से मन में सदा के लिए धारण करें।

धरती को जलदार बनाए
अत: सब मिलकर आओ ! धरती को जलदार बनाए। विश्व बैंक द्वारा प्रदत्त करोड़ों रुपए और सरकारी योजनाएं देवनदी गंगा की शुचिता को वापस लौटाने में विफल रही है। इसके तहत अंधधार्मिक आस्था से लौटकर कड़े कानून प्रावधान के साथ अन्य सुरक्षा बलों की भांति नदी सुरक्षा बल बनाकर नदियों को संरक्षित किया जाना भी एक सार्थक पहल हो सकता है।

जल संपदा के संरक्षण
हांलाकि जल संपदा के संरक्षण संवर्धन के लिए इस युग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से करोड़ों अरबों रुपए की लागत से बड़े बड़े बांधों एवं नहरों का निर्माण किया गया है। तथापि समस्या धरी की धरी रह गई। परंपरागत तालाबों- कुओं की घोर अपेक्षा हुई है जो जल संग्रहण के सम्पन्न साधन थे। यदि संपूर्ण भू-भाग के 3 प्रतिशत एरिया में तालाब और कुएं का निर्माण हो तो वर्षों के 24 प्रतिशत से अधिक शुद्ध जल को संग्रहित किया जा सकता है।

विश्व जल दिवस पर लें ये संकल्प
साथ ही इसकी शुद्धता और पवित्रता की गारंटी लिए पुख्ता प्रबंधन और संचालन द्वारा यह कम बजट वाला सस्ता, सुंदर, टिकाऊ जल के लिए प्रकृति के आधार पर उचित समाधान है। इस पर भी नहले में दहले वाली बात होगी कि मुढ़ों प्रकृति की ओर, बढ़ों मनुष्यता की ओर के कथ्य को व्यक्तिगत रूप से मन में सदा के लिए धारण करें। अत: सब मिलकर आओ ! धरती को जलदार बनाए।

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