पटना । जिस शहर की चौहद्दी में गंगा, गंडक, सोन, पुनपुन, मोहाने और मोरहर नदी बहती हो वहां भला पानी की किल्लत कैसे हो सकती है। भाग्यशाली हैं आप कि पटना शहर में रहते हैं। आने वाले समय में भी प्यास तो सबकी बुझ जाएगी लेकिन खाने के लिए अन्न और बच्चों के लिए दूध कहां से लाएंगे। दरअसल खेती और पशुओं के लिए 80 प्रतिशत पानी खर्च हो रहा है। 20 फीसद में सड़क, पुल, पुलिया और मकान का निर्माण और गाडिय़ों की धुलाई के बाद नहाने और पीने के काम में उपयोग हो रहा है।
कहने को तो राजधानी की चौहद्दी में नदियां हैं लेकिन हर काम में भू-जल का दोहन हो रहा है। गंगा नदी के पानी का ट्रीटमेंट कर पेयजल आपूर्ति की योजना बनी लेकिन यह फ्लॉप साबित हो गई। करीब 25 लाख की आबादी वाले पटना का भू-जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। गर्मी के दस्तक देते ही भू-जल स्तर से नगर निगम की बोरिंग दूर हो जाती है।
एक किलो गेहूं के लिए हजार लीटर पानी जरूरत
आदमी की प्यास बुझाने के लिए तो अधिकतम तीन लीटर पानी पर्याप्त है। एक किलो गेहूं के लिए हजार लीटर पानी चाहिए। एक किलो चावल के लिए चार हजार लीटर और एक किलो दूध के लिए 800 लीटर पानी की जरूरत है। खेती और पशुधन के लिए सभी जलस्रोतों से करीब 80 फीसद से अधिक पानी जुटाना मुश्किल हो रहा है। ऐसा नहीं होता यदि भू-जल के विकल्प के रूप में नदियों के पानी का उपयोग किया जाता।
जीवनशैली से पानी की बर्बादी
सामान्य रूप से नहाने के लिए 100 लीटर पानी कम नहीं होता। बदलती जीवनशैली में बाथटब और शॉवर के उपयोग के कारण हम कम-से-कम 300 से 500 लीटर पानी बहा देते हैं। बाथरूम में जितना पानी खर्च हो रहा है। पहले किसी मोहल्ले में एक-दो कारें होती थीं, आज एक घर में औसत दो कारें खड़ी होने लगी हैं। शहर में होटल, गैराज, रेस्टोरेंट, सैलून, ब्यूटी पार्लर और अब तो वाटरपार्क भी भू-जल स्रोत के दोहन का माध्यम बन गए हैं।
गाडिय़ों की धुलाई में काफी पानी होता खर्च
राजधानी के हर मोहल्ले में लग्जरी गाडिय़ों की धुलाई में रोजाना लाखों गैलन पानी (पेयजल) खर्च होता है। शहर में सार्वजनिक नलों की टोंटी गायब रहने से हजारों गैलन पेयजल नाली में बह जाता है। बाजार में पीने का आधा लीटर पानी अब 10 रुपये से आने लगा है। भू-गर्भ जल स्रोत पर होटल, रेस्तरां, गैराज, कारखाने, अग्निशमन, भवन, रोड और पुल निर्माण से लेकर कृषि व पशुपालन तक आश्रित है।
तकनीक से जल संचयन
भू-गर्भ जल के दुरुपयोग को रोका जा सके इसलिए कृषि क्षेत्र में श्री विधि तकनीक का उपयोग शुरू किया गया है। अंग्रेजी के तीन शब्दों ‘एसआरआइ’ यानी ‘सिस्टमेटिक राइस इंटेंसिफिकेशन’ ‘श्री’ विधि का विस्तारित नाम है। इस विधि से खेती का मतलब धान की सघनीकरण प्रणाली है। इस पद्धति से खेती का मूल उद्देश्य पानी के बेजा इस्तेमाल को रोकना है।
बायलॉज में रेनवाटर हार्वेस्टिंग
शहरी क्षेत्र में वर्षा जल-संचयन के लिए नये भवनों के निर्माण में रेनवाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था अनिवार्य करने से भू-जल संरक्षण संभव हो सकेगा। हालांकि बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 में नये भवनों के निर्माण के लिए नक्शा पास करने की शर्त में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रबंध कराने की व्यवस्था देखना है।
निर्माण कार्य में नदी के पानी का इस्तेमाल हो
राजधानी में अब तक पीसीसी सड़क, पुल, नाली, आरओबी, फ्लाईओवर और अपार्टमेंट से लेकर आवासीय कॉलोनी के निर्माण में भू-जल के बजाय नदियों का पानी इस्तेमाल हो सकता है। गंगा, सोन और पुनपुन नदी शहर से सटी हैं। यदि नदियों के पानी का निर्माण कार्य में उपयोग हो तो भू-गर्भ स्रोत का दोहन रुक सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *