एकसाथ चुनाव को लेकर गर्म हो रही चर्चा के बीच मध्य प्रदेश ने अपना कदम बढ़ा दिया है। मध्य प्रदेश में सारे स्थानीय चुनाव (सहकारिता को छोड़कर) एकसाथ कराने का फैसला लिया गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि बार-बार के चुनाव राज्यों के लिए एक बड़ी दिक्कत है। ऐसे में स्थानीय चुनावों को एकसाथ कराने से समय, संसाधन के साथ राज्य के पैसे की भी काफी बचत होगी।
शिवराज ने चर्चा के दौरान यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राज्य निर्वाचन आयोग ने इसका एक फॉर्मूला बनाया है। इसे अंतिम रूप देने की तैयारी चल रही है। इसके तहत सहकारिता को छोड़कर प्रदेश के सभी स्थानीय चुनाव, इनमें नगरीय निकाय और पंचायत भी शामिल होंगे, को एकसाथ कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के लिए यह कदम बेहद अहम होगा, क्योंकि मौजूदा परिस्थिति में प्रदेश में सरकार गठन के बाद लगभग एक से डेढ़ साल अन्य चुनाव में चला जाता है।
नवंबर-दिसंबर में विधानसभा के चुनाव होते हैं। नई सरकार के शपथ लेने के कुछ महीनों बाद अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव आ जाता है। इसके खत्म होते ही प्रदेश में सितंबर-अक्टूबर में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव और उसके बाद पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू हो जाती है। इसके बाद सहकारिता का चुनाव आ जाता है। राज्य का एक से डेढ़ साल चुनाव में ही निकल जाता है। ऐसे में सरकार का पूरा ध्यान चुनाव पर ही केंद्रित रहता है, क्योंकि चुनाव में एक भी हार-जीत से उसकी लोकप्रियता तय होने लगती है। कहा जाता है कि जमीन खिसक गई।
इस बीच विकास कार्य लगभग ठप पड़ जाता है। गौरतलब है कि देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ कराने की चर्चा चल रही है। शिवराज सिंह चौहान इसको लेकर पहले भी कई मंचों से बोल चुके हैं। लेकिन उनकी इस मुहिम को उस समय ताकत मिली, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन सुधारों की ओर बढ़ने की बात कही।
हाल ही राष्ट्रपति ने संसद के बजट सत्र की शुरुआत में अपने अभिभाषण में इसका जिक्र कर एक बार फिर से इस मुद्दे को गरम कर दिया है। ऐसे में मप्र की यह पहल देश को एक नई दिशा दे सकती है।