ग्वालियर। श्रमण संस्कृति के दीप को प्रज्जवलित रखने के लिये संस्कारों का तेल बहुत जरूरी है। संस्कारों के द्वारा ही संस्कृति सुरक्षित रहती है। आज की युवा पीढ़ी के अंदर धर्म संस्कार है तो निश्चित देव, शास्त्र, गुरू रूप धर्म के रथ को आगे बढ़ाया जा सकता है। भारतीय संस्कृति आस्थ, श्रद्धा, समर्पण की संस्कृति है। यूं तो इस भारत भूमि में अनेंक क्षेत्र धार्मिक स्थल व मंदिर आदि है जिनसे इस धरा की शोभा वुद्धिगत हो जाती है। पर जहां मंदिर नही है वहां मंदिरों का निर्माण संस्कृति की सुरक्षा के लिये बहुत जरूरी है। यह बात बुधवार को प्रतिष्ठाचार्य मुकेश कुमार शास्त्री अम्बाह ने शिंदे की छावनी स्थित शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर के वेदी प्रतिष्ठ जिनविम्ब स्थापना एवं शिखर शिलान्यास महोत्सव में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
म्हिलाओं ने 81 कलशों से नवीन वेदी शुद्धि की। प्रतिष्ठाचार्य मुकेश कुमार शास्त्री अम्बाह एवं सहप्रतिष्ठचार्य वीरेद्र जैन ने मंत्रउच्चारणों के साथ विधि संस्कार के साथ मंदिर की तीन वेदिकाओं की इंद्राणियों ने 81 मंगल कलशों के शुद्ध जल, चंदन, सबऔशधिक, केशर से स्वातिक आदि से मंगल गीता गाकर शुद्धि संपन्न कराई गई। जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि महोत्सव के प्रतिष्ठाचार्य मुकेश कुमार शास्त्री अम्बाह एंव सहप्रतिष्ठचार्य वीरेद्र जैन ने मंत्रउच्चरण के साथ में भगवान शांतिनाथ का शुध्द जल से इंद्रो ने अभिषेक जयकारों के साथ किया। शांतिधार सुरेन्द्र जैन अमित जैन परिवार द्वारा कि गई। याग महामंडल विधान के मंढने पर मुख्य मंगल कलश स्थापना श्रीमती बीना जैन एवं दीप प्रज्जवलित श्रीमती नीलम सुनील जैन ने किया। विधान में सौधर्म इन्द्र इंजि सुमत प्रकाश जैन, कुबेर चक्रेश जैन, ईशान इन्द्र बाबूलाल जैन, सनत इन्द सुरेन्द्र जैन, यज्ञनायक रविद्र जैन, महेन्द्र, इंद्र, राकेश जैन सहित इन्द्र- इन्द्रणियों ने पीले वस्त्र धारण कर पूजा अर्चना कर संगीतमय सिध्दप्रभू की आराधना करते हुये महाअघ्र्य भगवान जिनेन्द को समर्पित किए। इस मौके पर मंदिर समिति के चक्रेश जैन, रविंद्र जैन, अशोक जैन रमेश जैन विपिन अमरीश जैन, राजू जैन, डॉ. अरुण जैन, उमेश जैन, महेश जैन उपस्थित थे।

भजनों पर झूमे इंद्रा-इंद्राणी
संगीत पार्टी के संगीतकार नीतू जैन ने मेरे सिर पर रख दो प्रभू अपने दोनों हाथ, प्रभू एक बार इस बालक के घर भी आ जाना, देखा मैंने त्रिशाल का लाल सोने के पालने में, बाजे कुण्डलपुर मे बधाई की नगरी में जन्में मेरे महावीर…. नगरी में देखों छाई खुशी अपरम्पार, जैन धर्म के हीरे मोती में बिखराउं गली गली आदि भजनों पर इंद्रा-इंद्राणी झूमे।

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