सुरेश गुप्ता
कृषि प्रधान मध्यप्रदेश ने पिछले 13-14 सालों में कृषि और सहयोगी क्षेत्रों में जो प्रगति की, वह अविश्वसनीय है। आज की स्थिति में मध्यप्रदेश की कृषि विकास दर देश ही नहीं, विदेश के किसी भी हिस्से से ज्यादा है। यह चमत्कार मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के कल्पनाशील नेतृत्व में कृषि को लाभदायी बनाने के राज्य सरकार के कारगर प्रयासों का परिणाम है। मध्यप्रदेश ने इस अर्से में कृषि के क्षेत्र में उपलब्धियों के हर पैरामीटर पर उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। इस प्रदर्शन में किसानों की अनथक मेहनत भी उतनी ही परिणामकारी रही है, जितनी राज्य सरकार की नीतियाँ और फैसले।
पुरस्कार और सम्मान
मध्यप्रदेश को लगातार चार वर्षों से भारत सरकार से राष्ट्रीय कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हो रहा है। वर्ष 2011-12, 2012-13 से 2014-15 तक की अवधि के तीन पुरस्कार कुल खाद्यान्न उत्पादन में तथा वर्ष 2013-14 का पुरस्कार कुल गेहूँ उत्पादन में उत्कृष्टता हेतु मिला है। प्रदेश को लगातार पाँचवें वर्ष भी कृषि कर्मण अवार्ड प्रदान किये जाने की घोषणा हो चुकी है। पाँचवां पुरस्कार वर्ष 2015-16 में गेहूँ उत्पादन में उत्कृष्टता के लिये प्रदान किया जायेगा।
कृषि उत्पादन व उत्पादकता उपलब्धियाँ
प्रदेश की औसत कृषि विकास दर विगत चार वर्ष में 18 प्रतिशत सालाना से अधिक रही है। यह उपलब्धि प्राप्त करने वाला मध्यप्रदेश देश का एकमात्र प्रदेश है। पिछले बारह वर्षों में कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दिये जाने का ही परिणाम है कि वर्ष 2016-17 में प्रदेश का कुल कृषि उत्पादन बढ़कर लगभग 544 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है। इस तरह प्रदेश ने पिछले बारह वर्ष में 154 प्रतिशत वृद्धि हासिल की है।
प्रदेश का कुल खाद्यान्न उत्पादन भी पिछले वर्ष तक 4 करोड़ 39 लाख मीट्रिक टन हो गया है, जो वर्ष 2004-05 में लगभग एक करोड़ 43 लाख मीट्रिक टन था। इस तरह से प्रदेश ने कुल खाद्यान्न उत्पादन में 207 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है।
आज की स्थिति में प्रदेश का कुल दलहन उत्पादन 79 लाख 23 हजार मीट्रिक टन है, जो वर्ष 2004-05 में मात्र 33 लाख 51 हजार मीट्रिक टन था। इस प्रकार एक दशक में इस क्षेत्र में 136 प्रतिशत की वृद्धि प्रदेश ने हासिल की है। इसी तरह प्रदेश का तिलहन उत्पादन वर्ष 2004-05 के 49 लाख 8 हजार मीट्रिक टन की तुलना में वर्ष 2016-17 में बढ़कर 87 लाख 35 हजार मीट्रिक टन हो गया है। उत्पादन में यह वृद्धि लगभग 78 प्रतिशत की है।
प्रदेश के कुल कृषि क्षेत्र में भी पिछले बारह वर्षों में 153 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आज प्रदेश का कृषि रकबा बढ़कर 2 करोड़ 49 लाख हेक्टेयर हो गया है। यह पहले मात्र 57 लाख हेक्टेयर था।
सिंचाई क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता
प्रदेश के सिंचित रकबे में बढ़ोत्तरी के सुचिंतित प्रयासों से पिछले बारह वर्षों में सिंचाई के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल हुई है। इस अर्से में सिंचित रकबे में दोगुना से अधिक की वृद्धि दर्ज की गयी है। वर्ष 2004-05 में सिंचित रकबा 46 लाख 31 हजार हेक्टेयर था, जो वर्ष 2016-17 में बढ़कर 110 लाख हेक्टेयर हो गया है।
जैविक खेती का प्रसार
मध्यप्रदेश देश के जैविक खेती के उत्पादन का चालीस प्रतिशत से अधिक उत्पादन करने वाला राज्य है। विश्व के कुल जैविक कपास उत्पादन में भी एक तिहाई योगदान प्रदेश का ही है। आज की स्थिति में प्रदेश में लगभग दो लाख हेक्टेयर में जैविक खेती की जा रही है।
आदान आपूर्ति में अग्रणी
कृषि क्षेत्र के विकास के संबंध में लागू प्रदेश सरकार की सुविचारित नीतियों का ही परिणाम है कि प्रदेश में आज 40 लाख क्विंटल प्रमाणित बीज पैदा किया जा रहा है। बारह साल पहले यह मात्रा सिर्फ 14 लाख क्विंटल ही थी। प्रदेश में वर्तमान में कुल 4 लाख 88 हजार ट्रेक्टर पंजीकृत हैं। वर्ष 2004-05 में यह संख्या मात्र 28 हजार 528 थी। अकेले पिछले वर्ष प्रदेश में लगभग 60 हजार ट्रेक्टरों का पंजीयन हुआ।
प्रदेश में सभी किसानों के खेतों की मिट्टी की जाँच का अभियान संचालित किया जा रहा है। जाँच के बाद पिछले वर्ष तक करीब 78 लाख किसानों को स्वाईल हेल्थ कार्ड (मृदा स्वास्थ्य पत्रक) वितरित किये जा चुके हैं। प्रदेश के सभी विकासखण्डों में मिट्टी परीक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से 265 नयी मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित की जा रही हैं।
अनुसंधान केन्द्र तथा संस्थागत स्थापना
प्रदेश में सिंचाई क्षमता के विकास एवं किसानों को गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों से लाभान्वित करने के मद्देनजर मुख्यमंत्री सोलर पम्प योजना लागू की गई है।
पिछले बारह वर्षों में प्रदेश की कृषि उपज मण्डियों में जिंसों की आवक भी बढ़कर 2 करोड़ 15 लाख मीट्रिक टन हो गयी है। प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का सफलता से क्रियान्वयन किया जा रहा है। खरीफ 2016-17 में अकेले दतिया जिले में फसल मौसम के मध्य फसल क्षति जोखिम के अंतर्गत 16 हजार से ज्यादा किसानों को करीब साढ़े नौ करोड़ की बीमा राशि का भुगतान हुआ है।
प्रदेश में दो नये कृषि महाविद्यालय बारासिवनी जिला बालाघाट और पंवारखेड़ा जिला होशंगाबाद में स्थापित किये गये हैं। अंतर्राष्ट्रीय-स्तर के दो कृषि संस्थान इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया खमरिया जिला जबलपुर में और अंतर्राष्ट्रीय शुष्क कृषि अनुसंधान केन्द्र (ईकारडा) की स्थापना अमलाहा जिला सीहोर में इस अरसे में की गयी है। साथ ही फंदा जिला भोपाल में भारत सरकार द्वारा क्षेत्रीय दलहन अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया गया है।
भावांतर और अन्य किसान कल्याण के कदम
प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को मण्डियों में भाव के उतार-चढ़ाव से होने वाली हानि से सुरक्षित करने के लिये सुरक्षा कवच के रूप में भावांतर भुगतान योजना खरीफ-2017 में प्रारंभ की गयी। वर्तमान में प्रथम चरण तक लगभग 1 लाख 28 हजार किसानों को 136 करोड़ 75 लाख रुपये की राशि का भुगतान किसानों को किया जा चुका है। योजना में लगभग 704 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान पंजीकृत किसानों को किया जायेगा।
प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2012-13 से कृषकों को फसल ऋण शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर प्रदाय किया जा रहा है। वर्ष 2016-17 में राशि रुपये 11 हजार 600 करोड़ का फसल ऋण का वितरण किया गया है।
मुख्यमंत्री कृषक सहकारी ऋण सहायता योजना में वस्तु ऋण की समय पर वापसी पर वस्तु ऋण राशि में 10 प्रतिशत की छूट यानी खाद-बीज पर एक लाख रुपये का फसल ऋण लेने पर मात्र 90 हजार रुपये ही लौटाना होते हैं।
अधिकतर योजनाओं में अनुदान की राशि सीधे किसान के खाते में जा की जा रही है।
किसानों की आय दोगुना करने का रोडमेप
मध्यप्रदेश ने किसानों की आय पाँच वर्षों में दोगुना करने का रोड-मेप बनाया गया है। कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मछली-पालन, वानिकी, सिंचाई विस्तार, रेशम, कुटीर एवं ग्रामोद्योग आदि विभागों द्वारा रोड-मेप पर कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। जिला-स्तर पर रोड-मेप तैयार कर लिया गया है एवं ग्राम-स्तर का रोड-मेप तैयार किया जा रहा है।
स्व-रोजगार के अवसर
वर्ष 2015-16 के अंत तक प्रदेश में निजी क्षेत्र में 1250 कस्टम हायरिंग सेंटर की स्थापना की गयी है। वर्ष 2016-17 में 463 नवीन कस्टम हायरिंग सेंटर तथा निजी क्षेत्र में 32 हाईटेक कस्टम हब की स्थापना की गयी। कस्टम हायरिंग सेंटर्स की तर्ज पर ग्रामीण युवाओं के लिये कस्टम प्रोसेसिंग सेंटर्स की योजना भी जल्दी ही प्रारंभ की जा रही है। लेखक जनसंपर्क विभाग के एडीशनल डायरेक्टर हैं।

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