यह एक कटु तथ्य है कि बुजुर्गों के रहने के लिए भारत कोई बहुत अच्छी जगह नहीं रही और यहां बड़ी संख्या में बुजुर्ग अपनी ही संतानों द्वारा उपेक्षा, अपमान और उत्पीडऩ का शिकार होना शुरू हो गए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 90 प्रतिशत बुजुर्गों को अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी संतानों के आगे हाथ फैलाना और अपने बेटों-बहुओं के हाथों दुव्र्यवहार एवं अपमान झेलना पड़ रहा है। इसी को देखते हुए सबसे पहले हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बना कर पीड़ित माता-पिता को संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने का अधिकार दिया और दोषी पाए जाने पर संतान को माता-पिता की सम्पत्ति से वंचित करने, सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां न देने तथा सरकारी सेवा में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन से समुचित राशि काट कर माता-पिता को देने आदि का प्रावधान किया।

असम विधानसभा ने भी सर्वसम्मति से 15 सितम्बर 2017 को एक विधेयक पारित करके राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए अपने माता-पिता एवं दिव्यांग भाई-बहनों, जिनकी आय का कोई स्रोत न हो, की देखभाल करना अनिवार्य कर दिया है। वहां किसी भी सरकारी कर्मचारी को अपनी जिम्मेदारी से विमुख होने का दोषी पाए जाने पर उसके वेतन में से 15 प्रतिशत राशि काट कर पीड़ित माता-पिता अथवा भाई-बहन के खाते में जमा करवाने का प्रावधान किया गया है। इसी को देखते हुए अब मध्य प्रदेश के सामाजिक न्याय विभाग ने अपने मां-बाप को बेसहारा छोडऩे वाले सरकारी कर्मचारियों के वेतन में से एक निश्चित राशि उनके माता-पिता की सहायता के लिए काटने का नियम बनाया है। इसके लिए सामाजिक न्याय विभाग ने माता-पिता भरण-पोषण अधिनियम के नियमों में बदलाव कर दिया है। सामाजिक न्याय मंत्री गोपाल भार्गव के अनुसार शिकायत आने पर पहले एस.डी.एम. के समक्ष बयान दर्ज कराने होंगे।

शिकायत सही पाई जाने पर सरकार संबंधित कर्मचारी के वेतन से एक निश्चित राशि काट कर सीधे माता-पिता के बैंक खाते में जमा करेगी। इसके अंतर्गत अधिकतम राशि 10,000 रुपए तथा न्यूनतम राशि उस कर्मचारी के वेतन का 10 प्रतिशत होगी। सरकार जब इस बारे में विधेयक लाएगी तब राज्य में रहने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों को भी इसी नियम में जोडऩे का प्रावधान किया जाएगा। बुजुर्गों की देखभाल की दिशा में हिमाचल, असम और मध्य प्रदेश सरकारों द्वारा उठाए गए ये पग सराहनीय हैं परंतु अभी भी अनेक ऐसे राज्य हैं जहां ऐसा कोई नियम या कानून नहीं है। अत: वहां भी ऐसा करना आवश्यक है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *