चीन ने गधों की खाल पर लगने वाले आयात कर में कटौती की है. यह फ़ैसला गधों की संख्या में आ रही कमी को देखते हुए लिया गया है. चीन में गधों की खाल का इस्तेमाल पारंपरिक दवाएं बनाने में किया जाता है. सोमवार से गधों की खाल पर आयात कर 5 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत हो जाएगा. गधे की खाल से बनने बनने वाले जिलेटिन की चीन में काफ़ी मांग है और हाल के वर्षों में गधों की खाल की खरीद भी काफी बढ़ी है. इस वजह से अफ्रीकी देशों में गधों की संख्या तेजी से गिरावट दर्ज की गई है, अफ्रीकी देशों में गधों का इस्तेमाल सामान ढोने और यातायात के साधन के रूप में किया जाता है.
बहुत कम हुई गधों की संख्या
चीनी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़, चीन में 1990 के बाद से गधों की संख्या लगभग आधी हो गई है जबकि इनकी मांग में बढ़ोतरी जारी है. कई अफ्रीकी देशों में भी गधों की बढ़ती मांग के चलते इनकी संख्या में बहुत कमी आई है. चीन में गधों की खाल को उबालकर जिलेटिन बनाया जाता है, इसका इस्तेमाल एनीमिया जैसी बीमारियों के इलाज में किया जाता है. चीन में गधे के मांस को भी बहुत पसंद किया जाता है. लेकिन आबादी में आती गिरावट और सुस्त प्रजनन क्षमता के कारण अब आपूर्तिकर्ताओं को कुछ अन्य विकल्प तलाशने पर मजबूर होना पड़ रहा है.

कितना बड़ा है गधों का कारोबार?

ब्रिटेन की चैरिटी डॉन्की सैंक्चुरी के आंकड़ों के मुताबिक हर साल 18 लाख गधों की खाल का कारोबार होता है जबकि मांग 100 लाख खालों की है.चीन की सरकार के मुताबिक़ वहां साल 1990 में गधों की संख्या 1 करोड़ 10 लाख थी जो अब घटकर महज़ 30 लाख रह गई है.
गधों की खाल को उबालकर बनने वाले जिलेटिन की कीमत 388 डॉलर (लगभग 25 हज़ार रुपए) प्रति किलोग्राम है. युगांडा, तंज़ानिया, बोत्सवाना, नाइज़र, बुर्किनो फ़ासो, माली और सेनेगल ने चीन को होने वाले गधों के निर्यात पर रोक लगा दी है.

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