रायपुर। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात जवानों की हताशा अब तक केवल उनकी ही जान की दुश्मन बनी हुई थी, लेकिन अब वे अपने साथियों की ही जान मरने लगे हैं। बीजापुर में शनिवार को सीआरपीएफ जवानों गोलीबारी ने आला अफसरों की चिंता बढ़ा दी है। जवानों के बीच आपसी गोलीबारी की इस साल तीन से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। फोर्स में इस साल खुदकुशी की घटनाएं भी बढ़ी हैं। इस सात के बीते 11 महीने में 36 जवान मौत को गले लगा चुके हैं।

नक्सल क्षेत्रों में पदस्थ जवानों में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। बीते साल 12 जवानों ने आत्महत्या की थी। 2015 में छह जवानों ने यह आत्मघाती कदम उठाया था। राज्य पुलिस के आंकड़ों के अनुसार 2007 से छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में 115 जवानों ने आत्महत्या की है। इनमें से 31 फीसदी आत्म हत्याएं 2017 में हुई हैं। लंबे समय से चल रहा मंथन खुदकुशी को लेकर सीआरपीएफ ने कुछ साल पहले एक अध्ययन भी कराया था। सूत्रों के अनुसार इसमें सबसे बड़ी वजह काम के हालात व परिवार से दूरी निकल कर आई थी।

जवान लंबे समय तक घर से दूर रहते हैं, बस्तर के कई इलाकों में मोबाइल नेटवर्क की समस्या है, इससे उनकी परिवार से बात भी नहीं हो पाती। से में काम के दौरान छोटी- बड़ी घटना से भी उनका तनाव बढ़ जाता है। जवान करते हैं तबादले की मांग नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात बहुत से जवान यहां से अपना तबादला चाहते हैं। इस साल फरवरी में बस्तर डीजी दरबार लगाने पहुंचे सीआरपीएफ के डीजी दुर्गा प्रसाद के सामने भी बहुत से जवानों ने तबादला का निवेदन किया था।

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