छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन मनाई जाने वाली गौरा-गौरी पूजा का अपना खास महत्व है। इस दिन एक अनूठी और साहसिक परंपरा निभाई जाती है, जिसे सोंटा मारने की रस्म के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के हर गांव और शहरी इलाकों में लोग बड़ी संख्या में इस परंपरा का हिस्सा बनते हैं, और इसे देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है।

सोंटा मारने की इस परंपरा में पैरे से बनी रस्सी या हंटर, जिसे ‘सोंटा’ कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है। इसमें एक व्यक्ति दूसरे के हाथ पर सोंटा से प्रहार करता है। इस प्रहार के माध्यम से लोग थोड़ा दर्द सहकर ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करते हैं। मान्यता है कि इस परंपरा को निभाने से अनिष्ट की आशंका टल जाती है और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रची-बसी यह परंपरा हर साल सैकड़ों श्रद्धालुओं और दर्शकों को आकर्षित करती है, जो इसे न केवल देखने बल्कि अपने विश्वास को सशक्त करने के लिए भी आते हैं।