रतलाम। देशभर में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार से जुड़ी कई परंपराएं और मान्यताएं हैं। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के कनेरी गांव की है। यहां दिवाली पर तीन दिन तक गुर्जर समुदाय के लोग ब्राह्मणों का मुंह नहीं देखते।  यह परंपरा अपने आप में बहुत अजीब है, लेकिन फिर भी इस गांव के लोग इसे मानते हैं।

यह परंपरा पिछले कई साल से रतलाम के कनेरी गांव में चली आ रही है। आज भी यहां का गुर्जर समुदाय इस परंपरा का निर्वहन करता है। दिवाली के दिन वह गुर्जर समुदाय के लोग कनेरी नदी के पास इकट्ठा होते हैं और फिर एक कतार में खड़े होकर अपने हाथों में एक लंबा बेर पकड़ते हैं और उस बेर को पानी में प्रवाहित करते हैं। फिर विशेष पूजा करते हैं।
गुर्जर समाज के सभी लोग पूजा के बाद एकत्रित होकर घर से लाए गए भोजन को खाते हैं और पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा का पालन करते हैं। दिवाली के 5 दिनों में से तीन दिन रूप चौदस, दिवाली और पड़वी पर गुर्जर समुदाय के लोग ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं।
इस परंपरा के बारे में गुर्जर समुदाय के लोगों बताते है कि उनके पूर्वजों ने इस परंपरा की शुरुआत की थी, जिसे समुदाय के लोग लंबे समय से निभाते आ रहे हैं। दिवाली का दिन गुर्जर समुदाय के लिए सबसे खास दिन होता है। लोग नदी के किनारे बेर पकड़कर पितृ पूजा करते हैं और एकजुट रहने का संकल्प लेते हैं। इस दिन बेर की भी पूजा की जाती है। बेर का भी अपना महत्व होता है।