मुंबई। केरल फिल्म इंडस्ट्री में यौन उत्पीड़न (Sexual harassment in Kerala film industry) के खिलाफ मीटू अभियान काफी तेज हो चुका है। इस बीच लेखिका शोभा डे ने इस मुद्दे पर कड़ी टिप्पणी की है। उन्होंने बॉलीवुड में छाई चुप्पी और मलयालयम फिल्म निर्देशक मोहनलाल (Mohanlal) की चुप्पी पर भी सवाल खड़े किए हैं। मशहूर लेखिका ने मोहनलाल की खामोशी को कायराना बताते हुए उनसे एसोसिएशन ऑफ मलयायलम मूवी एक्टर्स के प्रमुख पद से इस्तीफा देने की मांग की है। गौरतलब है मलयालम सिनेमा के कई एक्टर्स, डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के खिलाफ रेप और यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हैं। यह सारा मामला तब खुला है जब केरल फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं की हालत को लेकर बनी जस्टिस के हेमा कमेटी की रिपोर्ट पब्लिक की गई है।

शोभा डे ने मोहनलाल को चुनौती देते हुए कहा कि मर्द की तरह खड़े होइए। अपनी टीम के लोगों से जिम्मेदारी लेने के लिए कहिए। जो लोग पीड़ित हैं, उन्हें न्याय दिलाइए। शोभा डे ने एनडीटीवी से कहा कि इस मामले में सबसे दर्दनाक यह है कि जस्टिस हेमा रिपोर्ट पिछले पांच साल से पड़ी हुई है। इस मामले में कुछ भी नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि 2017 में अपहरण और बलात्कार का मामला सामने आया थ। आज हम देख रहे हैं मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के हालात को लेकर रिएक्शंस आ रहे हैं। लेकिन यह केवल मलयालम सिनेमा की बात नहीं है। यह तरफ है। शोभा डे ने कहा कि यह बॉलीवुड में भी हो रहा है, बंगाल में भी फिल्म उद्योग में ऐसा ही हो रहा है। मुझे यकीन है कि कर्नाटक में भी ऐसा होता होगा। उन्होंने इस दौरान पितृसत्तामक व्यवस्था को भी निशाने पर लिया और मीटू केसेज के लिए इसको जिम्मेदार बताया।

इस मामले में प्रभावशाली लोगों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए शोभा डे ने कहा कि अच्छा नेतृत्व वह होता है जो लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा हो रही है, काम के बदले सेक्स की डिमांड हो रही है। यहां तक कि फिल्मों के सेट पर महिलाओं को अलग टॉयलेट तक नहीं मुहैया कराया जा रहा है। यह सब न केवल अमानवीय है, बल्कि बेहद कठोर है। मशहूर लेखिका ने कहा कि ऐसा नहीं है कि यह सब हो रहा था और किसी को पता नहीं था। दुख की बात यह है कि सबकुछ जानते हुए भी सही वक्त पर सही कदम नहीं उठाए गए। महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया गया।

शोभा डे ने आगे कहा कि मैं इस बात से भी हैरान हूं कि इन सबके खिलाफ बॉलीवुड से भी कोई ठोस आवाज नहीं आई। इंडस्ट्री में यह सब देखने के बावजूद किसी भी अभिनेता ने एक शब्द तक बोलना उचित नहीं समझा। उन्होंने कहा कि आखिर वह सब सहकर्मी हैं। अगर जरूरत है तो आपको सहकर्मियों के साथ खड़ा होना चाहिए। जब उन्हें जरूरत है तो उनके पक्ष में बोलना चाहिए। चाहे वह पुरुष हों या फिर महिला हों।