ग्वालियर। मध्यप्रदेष के चंबल के बीहडों को पहले जहां डकैतों का जन्मदाता कहा जाता था, वही अब चंबल के बीहड से सटे हुए गांव में कृत्रिम दूध बनाने के कारखाने फलफूल रहे है। कृत्रिम दूध, मावा, पनीर, मक्खन बनाने का कारोबार तो वैसे वर्श भर चलता है, लेकिन दीपावली का त्यौहार आते ही चंबल के बीहड़ों से सटे गांवों में भट्टियां कुछ ज्यादा ही लगना शुरू हो जाती है। इन भट्टियों में मावा बनाने का कारोबार बडे पैमाने पर बनाया जाता है। ये मावा सिंथेटिक तरीके से बनाकर पूरे देश में सप्लाई किया जा रहा है। वाशिंग पाउडर, रिफाइंट ऑयल सहित दूसरे केमिकल मिलाकर टनों मावा बनाने का काम हो रहा है।
डकैतों और चंबल के बीहड़ों के लिए पूरे देश में कुख्यात चंबल इलाका अब मिलावटी और सिंथेटिक मावे का गढ़ बन चुका है। भिण्ड-मुरैना के कई गांवों में जैसे ही त्योहार का सीजन आता है, मावा बनाने वाली भट्टियां जलने लगती हैं। यहां से प्रदेश के साथ-साथ उत्तरप्रदेश, राजस्थान, अहमदावाद, गुजरात, दिल्ली, कोलकता, उडीसा, बैंगलोर, समेत कई राज्यों में पनीर और मावा सप्लाई किया जाता है। यहां मावा कारोबारी ज्यादा मुनाफे के लिए नकली मावा और पनीर बड़ी मात्रा में बनाते हैं।
भिण्ड जिले के चंबल के किनारे बसे गांव बजरिया निवासी एक मावा व्यापारी दातार सिंह गुर्जर जिसने नकली मावा बनने के कारण अपना कारोवार बंद कर दिया है ने बताया कि, त्यौहारों के मौके पर मावा-पनीर की डिमांड बढ़ जाती है, लेकिन दूध के कम उत्पादन के चलते शुद्ध मावा नहीं बनाया जा सकता इसलिए नकली मावा का करोबार बढ़ रहा है। उसने बताया कि नकली मावा बनाने के लिए पहले शुद्ध दूध से क्रीम निकाल ली जाती है। जिसके बाद सिंथेटिक दूध में यूरिया, डिटरजेंट, रिफाइंड और वनस्पति घी मिलाया जाता है। मावा में चिकनाहट लाने के लिए वनस्पति और रिफाइंड को दोबारा मिलाया जाता है। यही नहीं, मावा को ज्यादा दिन तक सुरक्षित रखने के लिए उसमें शक्कर मिला दी जाती है। यही नहीं सिंथेटिक तरीके से बनाए गए दूध को कई मिल्क कंपनियों को भी सप्लाई किया जाता है। इस दूध से घी व अन्य प्रोडक्ट बनाए जाते हैं। सिंथेटिक दूध बनाने के लिए मात्र 10 ग्राम वॉशिंग पाउडर, 800 एमएल रिफाइंड तेल और मात्र 200 एमएल दूध को आपस में मिलाया जाता है। इसमें पानी भी मिलाया जाता है और एक लीटर दूध से 20 लीटर सिंथेटिक दूध तैयार करते हैं और इसी से मावा भी तैयार हो जाता है। यह मावा तैयार होकर पूरे देश में यानी कोलकाता से लेकर उड़ीसा व चेन्नई तक ट्रेनों व यात्री बसों के माध्यम से भेजा जाता है। सिंथेटिक दूध से बना मावा भी 200 रुपए किलो बिकता है, जबकि दूध से तैयार किया गया मावा त्योहार के सीजन में 400 रुपए किलो तक बिकता है। चंबल के बीहड में ऐसी जगह भट्टियां लगाई जाती है जहां खाद्य विभाग की टीम आसानी से न पहुंच सके।
उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे भिण्ड व मुरैना के सीमावर्ती गांवों में सिंथेटिक मावा तैयार हो रहा है, और ग्वालियर की मंडी के जरिए पूरे देश में पहुंच रहा है। बाजार के आंकड़ों के मुताबिक दीपावली पर करीब 300 टन से ज्यादा सिंथेटिक मावे की मिठाइयां बाजार में खपाई जाएंगी। चंबल में प्रतिदिन 10 लाख लीटर दूध का उत्पादन है, लेकिन बाजार में जितने मावा का ऑर्डर हैं, उसके लिए दूध करीब 15 लाख लीटर दूध की प्रतिदिन जरूरत है। जाहिर है ज्यादा ऑर्डर की पूर्ति सिंथेटिक यानी मिलावटी मावे से की जा रही है।
प्रशासन ने कई बार नकली और सिंथेटिक मावा कारोबार से जुड़े लोगों पर कार्यवाही की। भिण्ड व मुरैना में तो रासुका के तहत भी मामला दर्ज किया गया। खाद्य निरीक्षक रीना बंसल ने बताया कि भिण्ड जिले के गोरमी तहसीलदार जगदीश भील और खाद्य विभाग की टीम ने प्रतापपुरा गांव में पहुच कर भारी मात्रा में मावा बनाने का सामान ओर दूध को जप्त कर सेम्पल लिए और जाच के लिए भेजे गए है। फूड इंस्पेक्टर रीना बंसल और गोरमी तहसील दार जगदीश भील की संयुक्त कार्यवाही के साथ प्रतापपुरा गांव में की और कई दूध की डेरियों के मालिक अपनी अपनी डेरिया ओर मावा बनाने की भट्टियां बन्द कर के भाग गए जिसके बाद फूड इंस्पेक्टर रीना बंसल और जगदीश भील में गांव के चार दूध डेरियों पर छापा मारकर भारी मात्रा में मावा ओर दूध पकड़ा जिसमें अशोक नरवरिया, बिक्रम नरवरिया, हरपाल नरवरिया और सिद्धार्थ नरवरिया के यहा पर छापा मार कार्यवाही की जिसके बाद इन चारों के यहा से मावा ओर दूध का सेम्पल लेकर जांच के लिए भेजे गए है। प्रतापपुरा, सोनी, सेथरी, रावतपुरा, डोनियपुरा, कल्याणपुरा, हीरापुरा, हसनपुरा, मोहनपुरा आदि ग्रामो में भी छापामार कार्यवाही की गई है।
भिण्ड के षासकीय जिला चिकित्सालय में पदस्थ षिषुरोग विषेशज्ञ डाॅं. राकेष षर्मा ने बताया कि कृत्रिम दूध के सेवन करने से सबसे ज्यादा दुश्प्रभाव बच्चों पर पडता है। इससे बच्चे के आंखों की रोषनी, षरीर के अंगों में कमजोरी, लीवर में खराबी व विकलांगता भी आ सकती है। उन्होंने कहा कि कृत्रिम दूध सेवन से बच्चे की जान भी जा सकती है। डाॅं. राकेष षर्मा ने लोगों को सलाह दी है कि दीपावली पर कृत्रिम मावा से बनी मिठाईयों को सेवन न करें और न बच्चों को करने दें।