9 साल 4 महीने और 28 दिन बाद फिर ये सवाल पूछा जा रहा है कि आरुषि और हेमराज को किसने मारा? आप सोचते रहिए और शक करते रहिए. पर सच्चाई यही है कि आरुषि केस को किसी और नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई ने मारा है. कहानियों के पुलिदों पर जब जबरदस्ती सबूत खड़ा करने की कोशिश हो तो अंजाम यही होता है. हालात को कहानी और कहानी को सच बता कर जब कोई केस खड़ा किया जाता है, तब हश्र यही होता है. अब ढूंढिए नौ साल बाद फिर से आरुषि और हेमराज के कातिल को.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाया. जज ने भरी अदालत में कहा ‘ये अदालत शक का लाभ देते हुए डाक्टर राजेश तलवार और नुपुर तलवार को आरुषि और हेमराज के कत्ल के इल्ज़ाम से बरी करती है.’ और इसके साथ ही नौ साल चार महीने और 28 दिन बाद ये सवाल एक बार फिर देश के सामने आ खड़ा हुआ है? कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा? कौन है इन दोनों का कातिल?

ज़ाहिर है इस सवाल का जवाब हमारे पास भी नहीं है. वैसे भी जब देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के पास ही इस सवाल का जवाब नहीं है, तो हमारे पास कहां होगा. लेकिन आरुषि का कातिल जो भी हो पर इतना दावे से कह सकते हैं कि आरुषि केस का कातिल कोई और नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई ही है. सीबीआई ने ही कत्ल किया है इस केस का.

सीबीआई ने ही गुमराह किया कानून को. सीबीआई ने ही कहानी को हकीकत का नकाब पहना कर अदालत को उलझाया है. अब नौ साल चार महीने और 28 दिन बाद फिर से ढूंढो आरुषि और हेमराज के कातिल को. फिर बनाओ कोई नई कहानी. फिर लाओ कोई नई थ्योरी.

पिछले नौ साल चार महीने और 28 दिन से हर मां-बाप यही दुआ कर रहे थे कि जो वो सोच रहे हैं वो सच ना हो. नौ साल पांच महीने दस दिन से सीबीआई की पूरी कहानी जानने के बावजूद हर किसी को यही लग रहा था कि ये कहानी अधूरी है. झूठी है. चार साल पहले 25 नवंबर 2013 को सीबीआई की विशेष अदालत ने जब तलवार दंपत्ति को कातिल करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी तब भी उस फैसले पर बहस हुई. फैसले पर उंगली भी उठी. लगा फैसला अधूरा है. कहानी पूरी नहीं है. कड़ियां आपस में जुड़ नहीं रही हैं. वकील, दलील और कहानियां तो भरपूर हैं, मगर सबूत, चश्मदीद और थ्योरी गायब थी.

ज़ाहिर है अदालतें कहानियों पर फैसले नहीं सुनातीं. कहानियों के साथ कहानियों को जोड़ने वाले पात्र और सबूत भी होने चाहिएं. और इस मामले में वही नहीं था. बस इसीलिए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआई की तमाम कहानियों को अनसुना करते हुए निचली अदालत के फैसले को पूरी तरह से पलट दिया.

हालांकि कहने वाले अब भी कह सकते हैं कि अदालत ने शक का लाभ देते हुए तलवार दंपति को रिहा किया है. तो फिर इस दलील पर भी ये सवाल उठेगा और हरेक ज़ेहन को झकझोरता रहेगा और वो ये कि क्या कोई मां-बाप अपनी ही बेटी का कत्ल करने के बाद पूरे नौ साल चार महीने और 28 दिन तक अपने खूनी जुर्म, अपने दोहरे ज़ज्बात और खोखली भावनाओं को यूं छुपा सकते हैं? अगर डाक्टर राजेश तवलार और नूपुर तलवार सचमुच अपनी बेटी के कातिल हैं तो फिर यकीनन दोनों बेहतरीन अदाकार भी थे.

इलाहाबाद हाई कोर्ट का ये फैसला चौंकाता नहीं है. क्योंकि सीबीआई ने अपनी जांच में चौंकाने वाली कोई चीज ढूंढी ही नहीं थी. इलाहाबद हाई कोर्ट ने तलवार दंपति को अब बरी किया है. जबकि सच्चाई तो ये है कि आरोपी बनाने से पहले सीबीआई खुद ही तलवार दंपति को बरी कर चुकी थी. दिसंबर 2010 में अदालत में केस बंद करने की अर्जी तक दे चुकी थी. वो तो अदालत ने फटकार लगाई तो केस बंद करने वाली अर्जी को ही आरोप पत्र में बदलना पड़ा. अब ऐसे केस का क्या हश्र होगा इसका अंदाजा कानून की जरा सी भी समझ ऱखने वाला आसानी से लगा सकता है.

इसलिए नौ साल चार महीने और 28 दिन बाद अब ये सवाल फिर से सिर उठाएगा कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मार? सीबीआई के धुरंधर अफसर अरुण कुमार और उनकी टीम क्या इस सवाल का जवाब देना चाहेगी? आज देश यही जानना चाहता है.

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