सीहोर , मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 60 किलोमीटर दूर एक ऐसा कस्बा है जिसका नाम सुनकर राज्य के मुख्यमंत्री भी सहम जाते हैं. आलम यह है कि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी साढ़े सोलह साल के मुख्यमंत्रित्व काल में अपने ही गृह ज़िले में बसे इस कस्बे में किसी कार्यक्रम में नहीं गए. इस जगह का नाम है ‘इछावर’.
सीहोर जिले के इछावर से एक मिथक जुड़ा हुआ है और यह मिथक अभी तक तो सच साबित होते दिखा है. दरअसल, जो भी बतौर मुख़्यमंत्री इछावर गया उसका मुख्यमंत्री पद चला गया. यहां जाने से अब कोई मुख्यमंत्री कितना कतराता है. इसका अंदाज़ा इसी बात से लगा लीजिए कि एमपी में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले शिवराज सिंह चौहान भी आजतक इछावर किसी कार्यक्रम में नहीं गए.
कार में बैठे-बैठे ही स्वागत करवाया, उतरे नहीं CM
कई साल पहले इछावर तहसील के शाहपुरा गांव आकर सीआरपीएफ के शहीद कांस्टेबल ओमप्रकाश मरदानिया को श्रद्धांजलि देने भी तत्कालीन सीएम शिवराज इछावर कस्बे में नहीं गए थे. इसी साल मई के महीने में जब खराब मौसम की वजह से मुख़्यमंत्री का हेलिकॉप्टर उड़ान नहीं भर सका था तो उन्हें सड़क मार्ग से भोपाल आना पड़ा. रास्ते में इछावर कस्बा था. लिहाज़ा, स्थानीय नेता मुख्यमंत्री का स्वागत करने सड़क के दोनों ओर खड़े थे. शिवराज यहां से गुज़रे ज़रूर, लेकिन वह गाड़ी से नहीं उतरे और कार में बैठे-बैठे ही स्वागत करवाया.
इछावर आकर किस-किन ने गंवाई सीएम की कुर्सी
– कैलाश नाथ काटजू इस मिथक के तहत मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले पहले नेता थे. दरअसल जनवरी 1962 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. कैलाश नाथ काटजू एक कार्यक्रम में भाग लेने इछावर आए थे. इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तो हार हुई ही लेकिन खुद सीएम रहते हुए कैलाश नाथ काटजू अपनी ही सीट से चुनाव हार गए.
– मार्च 1967 को तत्कालीन सीएम द्वारका प्रसाद मिश्र इछावर गए थे. कुछ ही समय बाद पार्टी में असंतोष के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा
– साल 1977 की बात है जब बीजेपी के कैलाश जोशी इछावर आए लेकिन 4 महीने बाद ही उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई.
– फरवरी 1979 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा इछावर गए लेकिन ठीक एक साल बाद उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था
– नवंबर 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इछावर आकर इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की थी. लेकिन कुछ ही दिन बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई और दिग्विजय सिंह को सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी थी.
इस वजह से कोई सीएम नहीं जाता इछावर
वरिष्ठ इतिहासकार आर.डी. गोहिया बताते हैं, ”इछावर विधानसभा में एक मिथक जुड़ा हुआ है, जो भी राजा आया यहां है, उसे अपनी सत्ता, पद गंवाना पड़ा है. इछावर एक प्राचीन कस्बा हुआ करता था, आजादी के भी पहले यहां कहा जाता है कि एक राजा का महल भी बनाने का प्रयास किया गया है. यहां तंत्र विद्या में बड़ा ही सिद्ध माना जाता है. यहां चारों दिशाओं में शमशान भी बने हैं. उनके अवशेष भी हैं. यहां तांत्रिक क्रियाएं होती थीं, तो यह माना जाता है कि किसी और शक्तियों को यहां बर्दाश्त नहीं किया जाता है. जो भी राजा या सत्ता शीर्षक यहां आया है, उसे अपनी सत्ता पद गंवाना पड़ा है.
हालांकि, आज के वैज्ञानिक आधुनिक युग में इसका कोई महत्व नहीं है. लेकिन हमारे देश में कुछ मान्यताएं आज भी हैं. स्थानीय नेताओं ने सीएम के लंबे कार्यकाल के दौरान कई बार आमंत्रित किया. लेकिन यहां से गुजरने के बाद भी प्रदेश के मुखिया कभी गाड़ी से नहीं उतरे.”