नई दिल्ली, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कार्यक्रम का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन सियासी तपिश बढ़ गई है. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अलग अंदाज में नजर आ रही है. पार्टी ने 230 में से 78 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. वहीं, कर्नाटक मॉडल पर चुनाव लड़ने की बात करने वाली कांग्रेस टिकट बंटवारे की रेस में पिछड़ती नजर आ रही है. इन सबके बीच शिवराज की उम्मीदवारी का ऐलान नहीं किए जाने को लेकर ये चर्चा भी तेज हो गई है कि क्या बीजेपी के सत्ता में वापस लौटने पर फिर से सूबे की सत्ता के शीर्ष पर मामा की ताजपोशी होगी?

मध्य प्रदेश की जो सियासी तस्वीर सामने आ रही है, उसके हिसाब से सूबे की सत्ता में बीजेपी की वापसी से अधिक शिवराज की ताजपोशी की राह में रोड़े नजर आ रहे हैं. शिवराज सरकार के नाम और काम की जगह मोदी सरकार के काम की चर्चा, विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को चुनाव मैदान में उतारे जाने से इन अटकलों को और हवा मिल गई है.

विधानसभा चुनाव में बतौर उम्मीदवार दिग्गजों की जमावट को शिवराज की घेराबंदी की ही तरह देखा जा रहा है तो वहीं असम मॉडल भी चर्चा में आ गया है. बीजेपी ने असम में चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी करने के बाद पुराने सीएम को रिपीट करने की जगह नया सीएम बना दिया था. वो पांच संकेत कौन से हैं जो शिवराज की सत्ता में वापसी के रोड़े नजर आ रहे हैं?

चुनाव से पहले चेहरा घोषित नहीं किया जाना
बीजेपी ने मध्य प्रदेश की सत्ता में होते हुए भी सीएम उम्मीदवार घोषित करने से परहेज किया. बीजेपी ने ये साफ नहीं किया है कि चुनाव में चेहरा कौन होगा. पार्टी सामूहिक नेतृत्व के साथ चुनाव मैदान में उतरने की बात कह रही है. इसे शिवराज के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा रहा है. शिवराज के समर्थक भी पशोपेश में हैं कि चुनाव के बाद क्या होगा.

पांच जन आशीर्वाद यात्रा निकलना
शिवराज सिंह चौहान का ट्रेडमार्क रही है जन आशीर्वाद यात्रा. शिवराज हर साल चुनाव से पहले अधिक से अधिक विधानसभा क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए जन आशीर्वाद यात्रा निकालते रहे हैं. हर बार ये यात्रा जुलाई-अगस्त के महीने में शुरू हो जाती थी और चुनाव कार्यक्रम का ऐलान होने तक सौ या सौ से अधिक विधानसभा सीटों को कवर कर चुकी होती थी. लेकिन इसबार ऐसा नहीं हुआ. जन आशीर्वाद यात्रा बहुत देर से निकली. ये यात्रा संपन्न भी हो चुकी है लेकिन खास ये रहा कि एक नहीं, पांच यात्राएं निकलीं. हालांकि, शिवराज के लिए ये तय जरूर किया गया था कि वह हर रोज आधे दिन एक यात्रा में शामिल होंगे.

बड़े नेताओं, प्रतिद्वंदियों को टिकट
मध्य प्रदेश में बीजेपी का चुनाव अभियान सीएम शिवराज के इर्द-गिर्द ही रहा है लेकिन इसबार हालात बदले नजर आ रहे हैं. शिवराज साइड रोल में हैं और मुख्य भूमिका में केंद्रीय नेतृत्व नजर आ रहा है. गृह मंत्री अमित शाह ने सूबे के मैराथन दौरे किए और नेताओं की बैठक ली, चुनावी तैयारियों की जानकारी ली. चुनावी रणनीति तय करने में भी राज्य की जगह केंद्रीय नेतृत्व का दखल अधिक है, इस बात को लेकर भी चर्चा हो रही है. अब बीजेपी ने शिवराज के मुकाबले सीएम पद के मजबूत दावेदार माने जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर को भी उम्मीदवार बना दिया है. दोनों ही नेताओं की दिल्ली दरबार से करीबी भी जगजाहिर है.

पीएम मोदी का शिवराज का नाम न लेना
मध्य प्रदेश के पांच अलग-अलग इलाकों से निकली जन आशीर्वाद यात्रा के भोपाल पहुंचने पर बीजेपी ने कार्यकर्ता महाकुंभ आयोजित किया था. इस कार्यकर्ता महाकुंभ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया. पीएम मोदी ने अपने पूरे संबोधन में न तो शिवराज का नाम लिया और ना ही शिवराज सरकार की किसी योजना का. पीएम मोदी के संबोधन में शिवराज का जिक्र नहीं होने को शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर शिवराज के लिए सबकुछ ठीक नहीं होने का संकेत बताया जा रहा है.

शिवराज का अधिकारियों और मंत्रियों का आभार जताना
सीएम शिवराज ने हाल ही में अधिकारियों और मंत्रियों के साथ बैठक की. इस दौरान उन्होंने सरकार के कामकाज में सहयोग के लिए सभी अधिकारियों और मंत्रियों का आभार व्यक्त किया. सीएम शिवराज ने चुनावी मौसम में एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट करके सूबे के विकास में पूर्व मुख्यमंत्रियों के योगदान की भी तारीफ की. उन्होंने बीजेपी के बाबूलाल गौर, सुंदरलाल पटवा से लेकर कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की भी तारीफ की. चुनाव प्रचार के लिए बीजेपी की रणनीति और शिवराज की ये हरकतें सियासी नूराकुश्ती का प्रतीक हैं या प्रेशर टैक्टिस, ये बहस का विषय जरूर हो सकता है लेकिन इसे पार्टी के सत्ता में आने पर नए चेहरे की ताजपोशी के संकेत की तरह देखा जा रहा है.