भोपाल। बीजेपी की वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बीते कुछ समय से सुर्खियों में हैं. उमा भारती एक ऐसी नेता हैं, जिनके दखल का असर सत्ता और संगठन में साफतौर पर दिखाई देता रहा है. मध्य प्रदेश की राजनीति (Politics) में कई ऐसे मौके आए हैं, जब उमा भारती की नाराजगी खुलकर सामने आई है. पिछली बार उनकी नाराजगी तब सामने आई, जब बीजेपी ने उन्हें जन आशीर्वाद यात्रा के लिए न्योता नहीं भेजा था. उन्होंने कहा था कि अगर आप (बीजेपी) उन नेताओं के वजूद को पीछे धकेल देंगे, जिनके दम पर पार्टी का वजूद खड़ा है, तो आप एक दिन खुद खत्म हो जाएंगे. साथ ही कहा था कि अगर अब मुझे न्योता मिला, तो भी इस यात्रा में नहीं जाऊंगी.
बता दें कि उमा भारती ने आखिरी बार मध्य प्रदेश में 2003 में चुनाव जीता था. तब बीजेपी ने दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासन को खत्म कर कांग्रेस को हराया था. यह उस राजनेता के जीवन का एक बड़ा क्षण था, जिन्हें उस समय हिंदुत्व आंदोलन का अग्रणी स्तंभ माना जाता था. हालांकि एक दशक पहले ऐसा दौर भी आया जब उमा भारती को उनके गृह राज्य से निर्वासित कर दिया गया था और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया गया था, क्योंकि मध्य प्रदेश के नेताओं ने तर्क दिया था कि उनकी उपस्थिति शिवराज सिंह चौहान सरकार और पार्टी को अस्थिर कर देगी.
64 साल की उमा भारती 2014 में उत्तर प्रदेश के झांसी से संसदीय चुनाव लड़ीं और जीतीं. चुनाव में जीत का परचम फहराने के बाद वह नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं, लेकिन बाद में हालात बदले और उन्हें 2017 में अपनी पसंद के मुताबिक परिस्थितियां न होने के कारण मंत्रालय छोड़ना पड़ा. फिर साल 2019 में उन्होंने लोकसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया.
क्या पार्टी में अपनी खोई जगह तलाश रही हैं उमा भारती?
मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में उमा भारती अपने लिए जगह बनाने और अपना गौरव हासिल करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन उनकी ये लड़ाई विपक्ष से नहीं, बल्कि अपनी ही पार्टी से है. हालांकि उन्होंने घोषणा की है कि वह आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन वह ये साफ कर चुकी हैं कि उन्होंने राजनीतिक संन्यास नहीं लिया है. महिला आरक्षण विधेयक में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए स्पेशल कोटा की मांग के समर्थन में पार्टी के खिलाफ उनका आक्रोश एक और रिमाइंडर की तरह है कि वह पार्टी में अपनी मान्यता (दखल) के लिए प्रयास कर रही हैं.
PM मोदी को लिखे खत में उमा भारती ने क्या कहा?
लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश होने से कुछ घंटे पहले उन्होंने 19 सितंबर की सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा और बाद में अपनी नाराजगी सार्वजनिक करते हुए कहा कि वह इस बात से निराश हैं कि विधेयक में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं ने ओबीसी महिलाओं के लिए कोई कोटा तय नहीं किया है. उमा भारती जिस लाइन पर चल रही हैं, वह पार्टी के वर्तमान रुख से पूरी तरह मुख्तलिफ है. उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को यह याद दिलाने की कोशिश की कि जब एचडी देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री काल में विधेयक लोकसभा में पेश किया गया था, तो उन्होंने भी ऐसा ही रुख अपनाया था.
पूर्व सीएम ने खुलकर जाहिर की नाराजगी
हाल ही में उमा भारती ने यह कहकर पार्टी पर निशाना साधा था कि चुनावी राज्य मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से निकाली जा रही जन आशीर्वाद यात्रा के लिए उन्हें आमंत्रित नहीं किए जाने पर वह अपमानित महसूस कर रही हैं. उन्होंने कहा कि मैं भले ही य़ात्रा में जाती या ना जाती, लेकिन उन्हें कम से कम मुझे आमंत्रित करने का दिखावा तो करना चाहिए था. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें अब निमंत्रण मिलता भी है, तो भी वह न तो रैलियों में शामिल होंगी और न ही उनके सम्मान में होने वाले कार्यक्रम में शामिल होंगी. उन्होंने दावा किया कि शायद नेताओं को डर था कि वह सुर्खियां बटोर सकती हैं और उनकी (उमा भारती) उपस्थिति दूसरे नेताओं की मौजूदगी को कमजोर कर सकती है.
उमा भारती की केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंच सीमित
उमा भारती का सीधापन अक्सर उनपर भारी पड़ा है. हालांकि उमा भारती के एमपी बीजेपी और केंद्रीय नेतृत्व में कुछ साथी हैं. लेकिन 2004 में पार्टी छोड़ने से पहले वह मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं की करीबी थीं. लेकिन नरेंद्र मोदी-अमित शाह का भाजपा में उदय का मतलब है कि केंद्रीय नेतृत्व तक उनकी पहुंच अब सीमित हो गई है. एक समय वह मध्य प्रदेश की राजनीति में शिखर पर थीं, पहले उनकी दोस्ती को योग्यता के रूप में नहीं, बल्कि एक नकारात्मक विशेषता के रूप में देखा जाता था. नेता उनसे सार्वजनिक रूप से मिलने से बचते थे या केवल निजी तौर पर ही उनसे मिलते थे. यहां तक कि केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल जैसे उनके पूर्व विश्वासपात्र भी, जिन्होंने अपनी पार्टी बनाते समय उनके साथ जाने का फैसला किया था, बहुत पहले ही उनसे अलग हो गए थे.
…जब शिवराज को ‘बच्चा चोर’ कहकर पुकारा
जब उमा भारती को बीजेपी से निकाला गया, तो वह अक्सर शिवराज सिंह चौहान को “बच्चा चोर” कहती थीं, जो 2003 में बनी बीजेपी सरकार के संदर्भ में था, जिस पर उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्होंने इसे चुरा लिया है. कर्नाटक में ईदगाह मैदान में उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी होने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 8 महीने बाद इस्तीफा दे दिया था. एक साल बाद वह फिर से सीएम की कुर्सी पर बैठना चाहती थीं, लेकिन पार्टी ने उनकी मांग मानने से इनकार कर दिया और बाबूलाल गौर को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया. नवंबर 2005 में भोपाल में आयोजित पार्टी विधायक दल की बैठक से उमा भारती बाहर निकल गईं. हालांकि उनके समर्थकों ने बाहर हंगामा किया, केवल मुट्ठी भर विधायक ही उनके साथ थे, जिसके कारण उन्हें दूसरी बार निष्कासित कर दिया गया.
शिवराज ने ऐसे लिया था अपमान का बदला!
2008 के विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करते समय उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान एक-दूसरे से मिले. कथित तौर पर उमा भारती ने शिवराज को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया, लेकिन मृदुभाषी चौहान ने जवाबी कार्रवाई नहीं की या नहीं कर सके. हालांकि उन्होंने अपना बदला तब लिया जब उन्होंने भाजपा में उनके दोबारा प्रवेश पर रोक लगा दी और बाद में शर्त रखी कि वह मध्य प्रदेश की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करेंगी.
शराबबंदी को लेकर अपनी ही सरकार से बगावत
उमा भारती ने पार्टी नेतृत्व को पिछले साल अपने अस्तित्व की याद दिलाई, जब उन्होंने मप्र में शराबबंदी लागू करने की मांग की. इतना ही नहीं, उन्होंने एक शराब की दुकान पर पत्थर फेंककर कुछ बोतलें तोड़ दी थीं. उनके इस आक्रोश के लिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, लेकिन अंततः शराब की दुकानों से जुड़े “अहातों” को बंद कर दिया गया. जब अहाते बंद हो गए, तो उन्होंने अपनी इच्छा का सम्मान करने के लिए शिवराज सिंह चौहान को “सम्मानित” किया. जबकि उन्होंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि उनकी मूल मांग तो पूर्ण शराबबंदी थी. कुछ समय पहले वह लोधी समुदाय के एक कार्यक्रम में सुझाव देती दिखीं कि उन्हें अपनी अंतरात्मा की आवाज़ के अनुसार वोट करना चाहिए. बता दें कि उमा भारती लोधी समुदाय से हैं. इतनी राजनीतिक घटनाओं के बाद भी उमा भारती को भरोसा है कि बार-बार उनके इस तरह के रवैये के बावजूद पार्टी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगी.
खफा होकर अपनी पार्टी बनाई, लेकिन जीत नहीं पाईं
हाल के कैबिनेट विस्तार में शिवराज सिंह चौहान ने उनके भतीजे को मंत्रिमंडल में शामिल किया, जिसका उद्देश्य उन्हें शांत करना था. बीजेपी नेता निजी तौर पर विवाद खड़ा करने की उमा भारती की प्रवृत्ति को स्वीकार करते हैं. लोधी समुदाय की बुंदेलखंड क्षेत्र में अच्छी-खासी मौजूदगी है, लेकिन उमा भारती उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा तभी कर सकती हैं, जब वह बीजेपी के मंच से उनके लिए वोट मांगें. 2005 में भाजपा से निष्कासित होने के बाद 2 साल में दूसरी बार उमा भारती ने अप्रैल 2006 में भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था. 2008 के विधानसभा चुनावों में उनकी नवेली पार्टी केवल 5 सीटें जीत सकी थी, जबकि वह खुद अपने घरेलू मैदान बड़ा मलहरा से हार गईं थीं.
बीजेपी से निष्कासित होने पर हुआ नुकसान
2011 में जब वह बीजेपी में लौटीं, तो उनके पास चुनाव लड़ने के लिए संसाधन तक खत्म हो गए थे और 6 साल तक पार्टी से बाहर रहने के दौरान उन्होंने कुछ सबक सीख लिए थे, तब तक वह लगभग एक ख़त्म हो चुकी ताकत बन चुकी थीं. अपने बचाव में उन्होंने जो एकमात्र तर्क दिया वह यह था कि वह संघ की विचारधारा के प्रति दृढ़ता से प्रतिबद्ध थीं. बीजेपी के बाहर उनका कोई भविष्य नहीं है, क्योंकि उनकी राजनीति के ब्रांड को बहुत कम लोग पसंद करते हैं.