नई दिल्ली । ओंकारेश्वर में बीते दिनों नर्मदा का रौद्र रूप सामने आया. बाढ़ ने लोगों को परेशानी में डाल दिया. यहां न सिर्फ़ घाट डूबे, बल्कि घाट की दुकानें डूबीं. नावें बहीं बल्कि बहुत ऊंचाई पर ओंकारेश्वर मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार के पहले के बाजार तक पानी पहुंच गया. कई दुकानों में रखा सामान नर्मदा के भेंट चढ़ गया.
मध्य प्रदेश के खंडवा स्थित तीर्थनगरी ओंकारेश्वर में नर्मदा ने अपना रौद्र रूप दिखाया जिससे यहां काफी नुकसान हुआ. केवल नर्मदा घाट और उनके किनारे की दुकानें ही नहीं डूबीं, बल्कि मुख्य बाजार तक में पानी घुस गया. बारिश थमने के बाद नर्मदा तो शांत हुई है लेकिन अब स्थानीय निवासियों की आंखों में गुस्सा है और आंसू हैं. लोगों का प्रशासन पर खुला आरोप है कि प्रशासन की हठधर्मिता और गैर ज़िम्मेदाराना बर्ताव के कारण हुई त्रासदी जैसे हालात बने हैं. बांध को सिर्फ इसलिए भरते चले गए कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के लिए ओंकार पर्वत पर वाहन से जाने के लिए बनाई गई पुलिया पर पानी न आए.
ओंकारेश्वर में गत दिवस नर्मदा का रौद्र रूप सामने आया. यहां न सिर्फ़ घाट डूबे, बल्कि घाट की दुकानें डूबीं. नावें बहीं बल्कि बहुत ऊंचाई पर ओंकारेश्वर मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार के पहले के बाजार तक में पानी आ गया. लोगों के चेहरे पर दुःख से ज़्यादा गुस्सा दिख रहा है. सरकारी अधिकारी नुकसान के सर्वे करने आ रहे हैं तो लोगों गुस्सा फूट रहा है.
स्थानीय अधिवक्ता मनीष पुरोहित ने आरोप लगाया कि ये जो बाढ़ आई वह कृत्रिम बाढ़ थी. यह प्रशासन की नाकामी के कारण हुई. विगत पंद्रह दिनों से शंकराचार्य जी की मूर्ति अनावरण के लिए नर्मदा के घाट पर रपटा बना हुआ है, उसे खुला रखने के लिए डेम में पानी स्टोर किया और एकदम से जब पीछे पानी का प्रेशर बढ़ा तो अचानक सारा पानी छोड़ दिया जिससे बाढ़ आई. लोगों का बहुत नुकसान हुआ जिसके लिए पूरी तरह प्रशासन जवाबदार है. यह प्रायोजित आपदा है ,शासन -प्रशासन इसे नियंत्रित कर सकता था. उन्होंने केवल मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए ओंकारेश्वर की जनता जान -माल को दांव पर लगा दिया. प्रशासन जवाब दे, दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए.
स्थानीय अधिवक्ता मनीष पुरोहित ने आरोप लगाया कि ये जो बाढ़ आई वह कृत्रिम बाढ़ थी. यह प्रशासन की नाकामी के कारण हुई. विगत पंद्रह दिनों से शंकराचार्य जी की मूर्ति अनावरण के लिए नर्मदा के घाट पर रपटा बना हुआ है, उसे खुला रखने के लिए डेम में पानी स्टोर किया और एकदम से जब पीछे पानी का प्रेशर बढ़ा तो अचानक सारा पानी छोड़ दिया जिससे बाढ़ आई. लोगों का बहुत नुकसान हुआ जिसके लिए पूरी तरह प्रशासन जवाबदार है.
लोगों का कहना है कि यह आपदा रोकी जा सकती थी, यदि ओंकारेश्वर डेम में समान्य दिनों में पानी थोड़ा -थोड़ा पानी छोड़ा जाता. यहां डेम को सिर्फ इसलिए भरते चले गए कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के लिए ओंकार पर्वत पर वाहन से जाने के लिए बनाई गई पुलिया पर पानी न आए.
स्थानीय भाजपा नेता गजेन्द्र अग्रवाल ने कहा, बांध प्रबंधन से हमारा सवाल है कि बांध बाढ़ रोकने के लिए होता है या बाढ़ फ़ैलाने के लिए ? जब गर्मी में नदी सूख जाती है तब बांध से पानी नहीं छोड़ा जाता और जब वर्षाकाल में बाढ़ हालात बनते हैं तो बांध से नर्मदा में और पानी छोड़ दिया जाता है. बांध, जनता को मुसीबत से बचाने के लिए हैं या मुसीबत में डालने लिए?
इधर, कलेक्टर अनूप कुमार सिंह का कहना है कि इतनी तेज बारिश चलते ओंकारेश्वर में जो परिस्थितियां निर्मित हुईं, उनका प्रमुख कारण यह था कि ओंकारेश्वर डेम के अपस्ट्रीम में जो केचमेंट एरिया है, वहां बहुत पानी बरसा. साथ ही जो इंदिरा सागर डेम से 44 हजार क्यूमेक्स पानी छोड़ा गया. इससे ओंकारेश्वर नदी के किनारे जो स्थान थे, वहां दस फीट तक पानी भर गया. बहुत से स्थान जलमग्न हो गए थे. प्रशासन और पुलिस की पूरी टीम मौजूद थी.
कलेक्टर ने आगे बताया कि मंदिर और नगर पंचायत के एनाउंसमेंट सिस्टम द्वारा लगातार जनता को पानी बढ़ने की सूचना दी जाती रही. ओंकारेश्वर, डेम के बिल्कुल नीचे है इसलिए यहां तो समय कम मिल पाता है. फिर भी प्रशासन की मुस्तैदी से कोई जनहानि नहीं हुई. कुछ दुकानों में नुकसानी हुई. उनके सर्वे कराये जा रहे हैं. अभी प्राथमिकता उन लोगों तक भोजन पहुंचाने की है जिनका सब कुछ डूब गया है. हालात अब सामान्य हो रहे हैं.