नई दिल्ली, महाराष्ट्र के लिए संडे का दोपहर सियासी बवंडर लेकर आया. कुछ ही घंटों में राज्य के विपक्षी नेता रहे अजित पवार ने 180 डिग्री का टर्न लेते हुए अपने चाचा शरद पवार से बगावत कर दी. ये कोई छोटी-मोटी बगावत नहीं थी. चाचा पवार के साथ अजित पवार की इस टकराव ने महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर ही बदल दी. अजित पवार पहले तो नेता प्रतिपक्ष होने के नाते अपने घर में एनसीपी विधायकों की मीटिंग कर रहे थे.

इसी मीटिंग में सियासी घटनाक्रम कुछ ऐसा हुआ कि अजित पवार वहां से सीधे राजभवन पहुंच गए. अजित पवार के साथ 18 विधायक भी थे. अभी लोग कुछ कयास लगा ही रहे थे कि खबर आई कि अजित पावर महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार में डिप्टी मंत्री बनेंगे. बस आधा घंटे की बात रही और महाराष्ट्र की राजनीतिक तस्वीर पूरी तरह से बदल गई. अजित पवार समेत 9 एनसीपी नेताओं ने एकनाथ शिंदे की नेतृत्व वाली शिवसेना सरकार में मंत्रीपद की शपथ ले ली. अजित पवार शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए.

क्या बीजेपी के सामने कम हो गई शिंदे की बारगेनिंग पावर?
महाराष्ट्र का ये सियासी घटनाक्रम कई सियासी संदेश लेकर आया है. अजित पवार का महाराष्ट्र की सरकार में शामिल होने का एक मतलब यह है कि बीजेपी के सामने एकनाथ शिंदे की तोल-मोल करने की क्षमता कम हो गई है. क्योंकि बीजेपी के पास अब विकल्प के रूप में अजित पवार आ गए हैं. बीजेपी अपनी जरूरत और हालात के अनुसार एकनाथ शिंदे या फिर अजित पवार के साथ आगे बढ़ सकती है या फिर दोनों को लेकर साथ चल सकती है, लेकिन ये सियासी हालत पर निर्भर करेगा. साथ ही इस त्रिकोण दोस्ती की असली परीक्षा 2024 में सीटों के बंटवारे के दौरान होगी.

गौरतलब है कि महाराष्ट्र में भले ही सत्ता की अगुवाई एकनाथ शिंदे कर रहे हों, लेकिन राज्य में असली बॉस बीजेपी ही है. 48 लोकसभा सीटों वाला महाराष्ट्र 2024 के चुनाव के लिहाज से बीजेपी के लिए अहम राज्य है. 2014 से ही बीजेपी इस राज्य में क्लीन स्वीप करती आ रही है. 2019 में भी बीजेपी ने यहां प्रचंड जीत हासिल की थी. 2014 में बीजेपी और उद्धव वाली शिवसेना ने 48 में से 41 सीटें जीती थीं. 2019 में भी बीजेपी और उद्धव वाली सेना ने 48 में से 41 सीटें जीती थी. इन दोनों चुनावों में बीजेपी अकेले 23-23 सीटें जीती थी. निश्चित तौर पर बीजेपी इसी प्रदर्शन को 2024 में भी दोहराना चाहेगी. लेकिन ये इतना आसान नहीं है.

शिंदे की महात्वाकांक्षा बीजेपी के लिए खड़ी कर सकती है परेशानी
बीजेपी की इस कोशिश में एकनाथ शिंदे की महात्वाकांक्षा दीवार बनकर खड़ी हो सकती है. सीएम बनने के बाद एकनाथ शिंदे ने अपनी स्वतंत्र ताकत विकसित करनी शुरू कर दी है. शिंदे बीजेपी की आभामंडल से निकलकर अपनी निजी छवि विकसित करना चाहते हैं. लंबी पारी को राजनीति करने के लिए शिंदे के लिए ये मुफीद है.

शिंदे और उनके नेता गाहे-बगाहे ऐसा संकेत भी देते रहे हैं. कुछ ही दिन पहले शिंदे गुट के एक सांसद गजानन कीर्तिकर ने कहा था कि 2024 में शिंदे गुट वाली शिवसेना 22 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. दरअसल 2019 में बीजेपी के साथ अविभाजित शिवसेना 23 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. खुद बीजेपी 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी. इसी तर्ज पर अब खुद को वास्तविक शिवसेना बताने वाली शिंदे की अगुवाई वाली पार्टी 2024 में 22 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है.

उद्धव के साथ हाथ जला चुकी बीजेपी है बेहद सावधान
शिंदे की महात्वाकांक्षा तो अपनी जगह पर है लेकिन क्या बीजेपी एकनाथ शिंदे की इस मांग को स्वीकार करेगी. 2019 के विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे से झटका खा चुकी बीजेपी अब हर हालत में सत्ता का कंट्रोल अपने हाथ में रखना चाहती है. बीजेपी ऐसा तभी कर सकती है जब लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में वो ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने पास रखे. ताकि सरकार में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी खुद बीजेपी की हो. इसके लिए ये जरूरी है कि बीजेपी महाराष्ट्र में अपने सहयोगियों को कम से कम सीटें लड़ने के लिए दे. लेकिन अब तो बीजेपी को अजित पवार और एकनाथ शिंदे के बीच अपनी सीटें बांटनी पड़ेगी. और बीजेपी की यही समस्या एकनाथ शिंदे की भी समस्या बढ़ा सकती है.

सीटों के बंटवारे के दौरान होगी दोस्ती की असली परीक्षा
इसे उदाहरण से समझा जा सकता है. मान लें कि शिंदे लोकसभा चुनाव में 22 सीटें चाहते हैं, लेकिन अब बीजेपी को अजित पवार के साथ भी लोकसभा सीटें बांटनी पड़ेगी. अजित पवार ने आज ही दावा किया है कि एनसीपी के सांसद भी उनके पास हैं. इस स्थिति में बीजेपी अपने कोटे का सीट कभी भी शिंदे और अजित पवार कैंप को नहीं देनी वाली है. यानी कि बीजेपी ने महाराष्ट्र में अपने सहयोगियों के लिए जो सीटें तय कर रखी हैं उसी में कुछ सीटें शिंदे गुट के नेताओं को मिलेगी और कुछ सीटें अजित पवार गुट के नेताओं को. इस समीकरण से एकनाथ शिंदे को निश्चित रूप से 22 से कम सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ेगा. अगर अजित पवार विपक्ष के कोटे में से आधा सीटों पर दावा करते हैं हो सकता है एकनाथ शिंदे की शिवसेना को लोकसभा में 10 या 11 सीटों पर चुनाव लड़ने को मिले. निश्चित रूप से ये फॉर्मूला एकनाथ शिंदे की सियासी ताकत को कम करने वाला है.

शिंदे को विधानसभा चुनाव के लिए भी करनी है तैयारी
बात लोकसभा चुनाव तक की ही नहीं है. 2024 के अक्टूबर में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं. एकनाथ शिंदे ने इस चुनाव में भी बतौर सीएम के चेहरे के अपनी पोजिशिनिंग करनी शुरू कर दी है. हाल ही में शिंदे गुट के नेताओं ने पूरे महाराष्ट्र में एक पोस्टर लगाया था. इस पोस्टर में एक सर्वे को हवाला देते हुए एकनाथ शिंदे को सीएम पद के लिए सबसे लोकप्रिय नेता बताया गया था. महाराष्ट्र बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस, जो कि खुद को सीएम पद का उम्मीदवार मानते हैं, के लिए इससे असहज स्थिति पैदा हो गई थी.

अगर लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपने सहयोगियों को ऊपर के समीकरण से संतुष्ट कर लेती है तो फिर विधानसभा चुनााव में भी कमोबेश इसी फॉर्मूले को दोहराया जा सकता है. तो एकनाथ शिंदे के सामने एक बार फिर से परेशानी आ सकती है. अगर बीजेपी शिंदे को कम सीटें देती है तो सीएम से टिकटों की आस लगाए बैठे कई नेताओं को निराशा हो सकती है. ऐसी स्थिति में एकनाथ शिंदे को अपने विश्वस्त नेताओं के बगावत का भी सामना करना पड़ सकता है.

महाराष्ट्र में अभी जैसी राजनीतिक स्थिति है उसमें बीजेपी निश्चित रूप से एकनाथ शिंदे और अजित पवार के बीच अपने गठबंधन के सियासी नफा-नुकसान को तौलेगी और उसी ओर जाएगी जहां उसे ज्यादा फायदा होगा. एकनाथ शिंदे अगर बीजेपी के सीटों के ऑफर से असहज महसूस करते हैं तो बीजेपी के पास उनका स्थान भरने के लिए अब अजित पवार आ चुके हैं.

WhatsAppFacebookTwitterTelegramSMSEmailPrintCopy Link