शिवपुरी। एमपी के शिवपुरी में भ्रष्टाचार का एक ऐसा केस सामने आया है जिसमें जनपद पंचायत के अधिकारियों-कर्मचारियों ने अंत्येष्टि-अनुग्रह राशि की लालच में 26 जिंदा लोगों को कागजों पर मरा हुआ बता दिया, और उनके कफन-दफन के इंतजाम के लिए दी जाने वाली राशि डकार ली। अभी तक की जांच में यह मामला करीब 94 लाख रुपए के गबन का सामने आया है। मामले में 2 सीईओ, 2 बाबू और ऑपरेटर पर इसके आरोप लगे हैं।

खुद को जिंदा बताने कर रहे जतन

ताज्जुब की बात यह है कि भ्रष्टाचारियों ने जिन जिंदा लोगों को मृत बता दिया, अब उनके सामने खुदको जिंदा साबित करने की चुनौती है। शिवपुरी में किसी की जिंदा पत्नी को मृत बता दिया तो किसी सुहागिन के पति के जिंदा रहते हुए उसे विधवा करार दे दिया गया। अब इन 26 लोगों को यह चिंता सताए जा रही है कि कागजों में मरा डिक्लेयर हो जाने के बाद इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा या नहीं। ये अपने आपको जिंदा कैसे साबित कर पाएंगे।

इस पूरे मामले का मुख्य किरदार है कंप्यूटर ऑपरेटर शैलेंद्र पाराशर। इसने जिंदा लोगों को ही रिकॉर्ड में मार दिया और उनकी अंत्येष्टि व अनुग्रह सहायता के लिए मिलने वाली राशि निकालता रहा। इसके लिए उसने दो जनपद सीईओ को डिजिटल सिग्नेचर उपयोग किए। संबंधित शाखा की दो बाबू भी मामले में जिम्मेदार पाई गईं हैं। पूरा मामला तब खुला जब शिकायत के बाद जांच की गई। जिला पंचायत सीईओ उमराव मरावी की अध्यक्षता में गठित समिति की जांच में रिपोर्ट के अनुसार, 22 अगस्त 2019 से लेकर 11 अक्टूबर 2021 तक 26 प्रकरणों में अनुग्रह सहायता राशि के रूप में 4 लाख रु. और अंत्येष्टि राशि 6 हजार रु. का फर्जी भुगतान पाया गया है। यह सभी 26 लोग वर्तमान में जिंदा हैं।

दो सीईओ समेत 5 आए लपेटे में

जिन दो जनपद सीईओ राजीव मिश्रा और गगन बाजपेयी के कार्यकाल में यह गबन हुआ उन्हें भी आरोपी बनाया गया है। साथ ही दो बाबू साधना चौहान और लता दुबे समेत मुख्य आरोपी शैलेंद्र पाराशर का नाम भी एफआईआर में है। कलेक्टर रवींद्र कुमार का कहना है कि जिला पंचायत सीईओ की जांच रिपोर्ट में 93.56 लाख रुपए का गबन सामने आया है। जिसकी एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी है।