भोपाल। बिजली कंपनियों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ बिजलीकर्मी एकजुट हैं। कर्मचारियों ने चेतावनी जारी करते हुए कह दिया है कि कंपनियों को निजी हाथों में देने की प्रक्रिया शुरू की, तो उत्तर प्रदेश की तरह मध्य प्रदेश में भी विद्युत आपूर्ति बंद कर देंगे। अभी निजीकरण की प्रक्रिया शुरू नहीं की है, उसके पहले ही कर्मचारी इंदौर, ग्वालियर और भोपाल में प्रदर्शन कर चुके हैं। जिला स्तर पर सभाएं कर रहे हैं।
दरअसल, केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने स्टैंडर्ड बिड डॉक्यूमेंट जारी किए हैं। ये सभी राज्यों को दिए हैं। बिजलीकर्मियों के संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारियों का कहना है कि इसके तहत बिजली वितरण कंपनियों को निजी हाथों में देने की योजना है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल वितरण निगम बनास को निजी हाथों में देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी, जहां बिजली कर्मियों ने 36 दिन तक विरोध प्रदर्शन किया और विद्युत आपूर्ति व्यवस्था ठप कर दी थी। तब जाकर निजीकरण की प्रक्रिया को मंत्रिसमूह की बैठक के बाद स्थगित किया था।
मप्र विद्युत अभियंता संघ के संयोजक वीकेएस परिहार का कहना है कि यूपी की तरह मप्र की मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी भोपाल, मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी जबलपुर, मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी इंदौर को निजी हाथों में सौंपने की योजना है, जो कि बर्दाश्त नहीं करेंगे। विरोध जारी है। ऐसी कोई प्रक्रिया आगे बढ़ती है तो पूरे प्रदेश में विद्युत आपूर्ति बाधित करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
प्रदेश के 1.50 करोड़ उपभोक्ताओं पर असर
उपभोक्ता निरंजन वाधवानी का कहना है कि यदि बिजली कंपनियों का निजीकरण किया जाता है तो प्रदेश के 1 करोड़ 50 लाख उपभोक्ताओं पर असर पड़ेगा। इन्हें मिलने वाली सब्सिडी खटाई में पड़ सकती है। निजी कंपनियां घाटा बताकर आसानी से बिजली के दाम बढ़ा सकती हैं। उपभोक्ताओं के खिलाफ कानूनी मुकदमों की संख्या बढ़ सकती है।
80 हजार अधिकारी, कर्मचारियों की नौकरी खतरे में होगी
प्रदेश की तीन कंपनियों में 30 हजार नियमित, 35 हजार आउटसोर्स और 6 हजार संविदा अधिकारी, कर्मचारी कार्यरत हैं। प्रस्तावित निजीकरण के तहत इनका संविलियन संबंधित निजी कंपनियों में होना है। अधिकारी, कर्मचारियों का कहना है कि निजी कंपनियां कर्मचारियों को झूठे आरोप लगाकर और मनमाने तरीके से काम ले सकती हैं। वेतन व सुविधाओं में कटौती तय है।