नई दिल्ली । इन्सानी जीन में म्यूटेशन से स्तन कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि होती है जिसे सामान्य तौर पर स्तन कैंसर कहा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में तकरीबन 40 फीसदी युवा महिलाएं स्तन कैंसर की चपेट में है। यहां गंभीर सवाल यह है कि जांच और इलाज के बाद भी भारत में स्तन कैंसर पीड़ित सभी मरीज जीवित नहीं रह पाते हैं। विकसित देशों की तुलना में भारत में औसतन 10 में से सात मरीज ही इलाज के बाद जीवित रह पा रहे हैं।
नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में स्तन कैंसर रोगियों के जीवित रहने की दर 66 से 70 फीसदी तक है जबकि विकसित देशों में यह 99 फीसदी तक पहुंच गई है। आईसीएमआर का तर्क है कि भारत (India) में स्तन कैंसर रोगियों के जीवित रहने की कम दर में सुधार लाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली देखभाल जरूरी है।
भारतीय वैज्ञानिक स्तन कैंसर रोगियों पर एक नया अध्ययन शुरू करेंगे। आईसीएमआर के गैर संक्रामक रोग शाखा की वैज्ञानिक डॉ. निशा को कार्यक्रम अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है। इस अध्ययन को पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और उत्तर पूर्वी राज्यों के अस्पतालों में किया जाएगा।
अध्ययन के लिए संस्थानों से मांगे प्रस्ताव
आईसीएमआर ने बताया कि यह पूरा अध्ययन हब और स्पोक मॉडल पर आधारित होगा। हब मॉडल के तहत आने वाले वे अस्पताल होंगे जहां सालाना कम से कम एक हजार स्तन कैंसर रोगी पंजीकृत हुए हैं जबकि स्पोक मॉडल में वे अस्पताल होंगे जहां सालाना तीन हजार से अधिक मरीज पंजीकृत हैं। इस अध्ययन को पूरा करने के लिए देश के शीर्ष संस्थानों से आवेदन भी मांगे हैं।
भारत में स्तन कैंसर की स्थिति
हर चार मिनट में एक भारतीय महिला को स्तन कैंसर का पता चलता है।
2018 में स्तन कैंसर के 1.62 लाख नए मामले और 87,090 मौतें हुईं।
भारत की उच्चतम कैंसर दर केरल राज्य में है।
अन्य राज्यों में मिजोरम, हरियाणा, दिल्ली और कर्नाटक शामिल हैं।
शहरों में 22 में से एक, गांवों में 60 में से एक महिला को स्तन कैंसर की आशंका।
(आंकड़े : विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट 2019, दिल्ली एम्स के अध्ययन)