नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने एक साथ (तत्काल) तीन तलाक को अवैध घोषित करते हुए इस पर पाबंदी की कानूनी तैयारी कर ली है। इस बारे में 15 दिसंबर से शुरू होने वाले संसद के शीत सत्र में विधेयक पेश किया जा सकता है।

विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे अवैध घोषित किए जाने के बावजूद तीन तलाक के मामले लगातार हो रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार, तीन तलाक पर बैन लगाने का प्रस्ताव व दोषी को तीन साल की कैद व जुर्माने की सजा का प्रावधान किया जाएगा। इसे गैर जमानती अपराध माना जाएगा। मुस्लिम महिला विवाह संरक्षण विधेयक नाम प्रस्तावित कानून का नाम ‘मुस्लिम महिला विवाह संरक्षण विधेयक’ रहेगा।

विधेयक को गुरुवार को केंद्र ने सभी राज्यों को भेजकर उनकी राय मांगी है। एक वरिष्ठ सरकारी अफसर ने बताया कि राज्यों को मसौदे पर तत्काल राय देने को कहा गया है। मसौदा गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले अंतर मंत्रालयीन समूह ने तैयार किया है।

समूह के अन्य सदस्यों में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री अरुण जेटली, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद व कानून राज्यमंत्री पीपी चौधरी शामिल थे।

गुजारा भत्ता मांग सकेगी पत्नी

तीन तलाक संबंधी कानून सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत पर लागू होगा। इसमें पीड़ित को मजिस्ट्रेट के पास शिकायत का अधिकार होगा। वह अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकेगी।

ऐसा होगा नया कानून

1. अगर कोई पति अपनी पत्नी को एक साथ तीन तलाक देता है तो वह गैर कानूनी होगा और अस्तित्व में नहीं माना जाएगा।

2. एक बार में तीन तलाक हर रूप में गैरकानूनी होगा चाहे वो लिखित हो, बोला गया हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक रूप में हो।

3. जो भी व्यक्ति अपनी पत्नी को एक साथ तीन तलाक देगा उसे तीन साल तक की कैद और जुर्माने की सजा होगी।

4. अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होगा।

5. मुकदमे का क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट की अदालत होगी

6. तीन तलाक पीड़िता मजिस्ट्रेट की अदालत में गुजारा भत्ता और नाबालिग बच्चों की कस्टडी की मांग कर सकती है और मजिस्ट्रेट इस पर उचित आदेश देगा।

7. यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़ कर पूरे देश में लागू होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था

सुप्रीम कोर्ट ने गत 22 अगस्त को एक साथ तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के चलन को असंवैधानिक करार दे निरस्त कर दिया था। इसके बावजूद लगातार तीन तलाक की घटनाएं हो रहीं थीं। सूत्र बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले इस साल तीन तलाक की 177 घटनाएं दर्ज हुईं जबकि फैसला आने के बाद 67 शिकायतें हुई हैं। सबसे ज्यादा मामले उप्र के हैं।

ये आंकड़े दर्ज शिकायतों के हैं। वास्तविकता में इससे भी ज्यादा मामले हो सकते हैं। हालिया मामला एएमयू प्रोफेसर का है, जिसने पत्नी को व्हाट्स एप से तीन तलाक दिया है।

सूत्र बताते हैं कि सरकार सामाजिक सुधार के तहत यह सख्त कानून ला रही है ताकि गैरकानूनी ढंग से तीन तलाक देकर बेसहारा छोड़ी गई मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षा और संरक्षण मिले। उन्हें उनके बच्चों की कस्टडी हासिल हो।

समवर्ती सूची का विषय शादी, तलाक, बच्चों की कस्टडी आदि समवर्ती सूची के विषय हैं, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं लेकिन राज्य केंद्रीय कानून के खिलाफ कानून नहीं बना सकते। सूत्र बताते हैं कि वैसे तो आने वाला कानून भविष्य से लागू होने वाला होगा (प्रॉस्पेक्टिव) लेकिन इससे पहले भी जिस महिला को गैरकानूनी ढंग से तीन तलाक देकर छोड़ा गया है वो मजिस्ट्रेट की अदालत में भरण-पोषण और बच्चों की कस्टडी की मांग कर सकती है।

अभी कोई फोरम नहीं सरकार एक अलग कानून सिर्फ इसलिए ला रही है क्योंकि तीन तलाक पीड़ित महिलाओं का कहना था कि उनके पास कोई ऐसी फोरम नहीं है, जहां वे जाकर मदद की मांग करें। इस संबंध में घरेलू हिंसा कानून बहुत प्रभावी नहीं हो रहा था। फैसला देने वाली दो जजों की पीठ ने भी सरकार को इस पर कानून बनाने का सुझाव दिया था।

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