जबलपुर.  मध्यप्रदेश में महिलाएं या बच्चियां कितनी सुरक्षित हैं, इस बात का दावा करने वाले सरकारी हुक्मरान और नेताओं के बयान तो हमने सुने हैं. लेकिन हकीकत में महिला अपराधों में रोकथाम तो दूर इनमे तेज बढ़त दर्ज की गई है. साल 2020 में प्रतिदिन 137 महिलाओं के साथ कोई ना कोई अपराध हुआ है.मध्य प्रदेश पुलिस रिकॉर्ड के आंकड़े यह भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं जिसमें साल भर में महिलाओं के साथ अलग-अलग अपराधों में 49823 मामले दर्ज किए गए.

महिला अपराधों के मामले में मध्यप्रदेश, देश की राजधानी बनने की राह पर है. तमाम दावों और प्रयासों के बावजूद भी यह कलंक मध्यप्रदेश के माथे से नहीं मिट पा रहा है. हालात यह हैं कि कोविड-19 के दौरान लगाए गए लॉकडाउन में भी प्रदेश में महिला अपराधों में कमी नहीं आई. मध्य प्रदेश पुलिस की ओर से हर माह जारी किए जाने वाली रिपोर्ट में कुछ ऐसे आंकड़े निकल कर सामने आए हैं जिन्हें सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. मध्य प्रदेश पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक पिछले 12 महीनों में ही चार हजार से ज्यादा दुष्कर्म और 6 हजार अपहरण के मामले सामने आ चुके हैं.

सहमा रहे हैं ये आंकड़े
1 जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक यानी कि 12 महीनों में ही 4532 महिलाएं और बालिकाओं के साथ दुष्कर्म हुआ.
यदि प्रतिदिन के हिसाब से आंकड़े देखें तो 13 रेप की घटनाएं रोजाना घटित हुई हैं

 प्रति माह के मुताबिक जनवरी में 372,फरवरी में 365, मार्च में 358, अप्रैल में 206-मई में 357 जून में 434 जुलाई में 439-अगस्त में 382 सितंबर में 418 अक्टूबर में 486 – नवंबर में 376 मामले और दिसंबर में 339 मामले दुष्कर्म के दर्ज किए गए.

महिला अपहरण
जनवरी में 675, फरवरी में 773 मार्च में 645 अप्रैल में 207 – मई में 381 जून में 624 जुलाई में 566 अगस्त में 569 – सितंबर में 638 अक्टूबर में 601 नवंबर में 659 और दिसंबर में 611 अपरहण किए गए हैं . यानी कि साल 2020 में कुल 6949 अपहरण के मामले दर्ज हुए और रोजाना औसत 20 अपहरण हुए.

क्या है कानूनविदों की राय
मध्यप्रदेश में महिला अपराध पर रोक लगाने के लिए सरकार ने सख्त कानून बनाया है. इसके तहत उस दुष्कर्मियों को फांसी की सजा तो सुनाई गई लेकिन आज तक कोई भी फांसी के तख्ते तक नहीं पहुंच पाया. ऐसे मामलों की जानकार और अधिवक्ता अंजना कुरारिया बताती हैं जिस तरीके से रेप की घटनाएं बढ़ीं उसके बाद देशभर में फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन भी हुआ.

देखा गया कि त्वरित न्याय भी पीड़िताओं को दिया गया. अंजना आगे कहती हैं,देखा जा रहा है कि पुलिस की इन्वेस्टिगेशन ऐसे मामलों में अमूमन ठीक नहीं रहती. साइंटिफिक एविडेंस की बात करें तो इसमें लापरवाही बरती जाती है. और नतीजा ट्रायल लंबा खिंच जाता है. बेशक कड़े कानून बनाने की वकालत समाज में हो रही है लेकिन यह भी देखा गया कि जितने सख्त कानून हुए उतनी ही ज्यादा बर्बरता पीड़िताओं के साथ बढ़ती जा रही है. रेप करने के बाद पीड़िताओं का कत्ल कर दिया जाता है.

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