पूरे देश में लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने में भले ही संवैधानिक दिक्कतें हों, लेकिन अगले साल लोकसभा के साथ एक दर्जन राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं। एक साथ चुनाव कराए जाने की दिशा में यह बड़ी शुरुआत होगी। इसके लिए किसी तरह के संविधान संशोधन व कानूनी बदलावों की जरूरत भी नहीं होगी।
भाजपा व सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, चूंकि चुनाव आयोग व अधिकांश दल एक साथ चुनाव कराए जाने के समर्थन में हैं, ऐसे में अगले साल लोकसभा चुनावों से इसकी शुरुआत हो सकती है। इसके लिए जो फार्मूला तैयार किया गया है उसके अनुसार लोकसभा चुनावों के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना के चुनाव तो होने ही हैं। अन्य कुछ राज्य भी शामिल हो सकते हैं।

कुछ महीने बढ़ सकते हैं चार राज्यों के चुनाव
इसके पहले इस साल के आखिर में जिन चार राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान व मिजोरम के चुनाव होने हैं उनमें कुछ की विधानसभा अवधि फरवरी 2019 तक है। ऐसे में वहां पर दो-चार महीने का राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। चूंकि चुनाव आयोग भी एक देश एक चुनाव के पक्ष में हैं, इसलिए ऐसा करने में ज्यादा दिक्कत नहीं है।

लोकसभा के बाद वाले तीन राज्य पहले करा सकते हैं चुनाव
लोकसभा चुनावों के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के विधानसभा चुनाव नवंबर 2019 में होने हैं। इन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और वे पहले चुनाव करा सकती हैं। जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन है और वहां भी अगले साल चुनाव संभावित हैं। इस तरह लोकसभा के साथ अप्रैल मई में कम से कम 11 राज्यों के चुनाव हो सकते हैं।

बिहार भी हो सकता है शामिल
इसमें बिहार भी शामिल हो सकता है। वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसके समर्थक हैं और भाजपा के साथ गठबंधन में फिर से जनादेश लेने में वह भी समय से पहले चुनाव के लिए तैयार हो सकते हैं। भाजपा के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि अगर एक साथ एक दर्जन राज्य विधानसभा चुनाव में जाते हैं तो उसके बाद देश भर में एक देश एक चुनाव का माहौल बनेगा। ऐसे में जरूरी संवैधानिक प्रक्रियाओं को पूरा करना भी आासल होगा।

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