ग्वालियर। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने गुरुवार को डीआरडीई (रक्षा अनुसंधान) के 200 मीटर के दायरे में बने शासकीय व निजी भवनों को लेकर दायर जनहित याचिका पर फाइनल फैसला सुना दिया। कोर्ट ने आदेश दिया है कि 2005 के बाद 200 मीटर के दायरे में जितने भी अवैध व वैध शासकीय व निजी भवन बने हैं, उन्हें तोड़ा जाए। यानी कोर्ट ने कहा कि नगर निगम तोड़ने का एक प्लान बनाए, उसके अनुसार अपनी कार्रवाई शुरू करे। इस आदेश के हड़कंप मचा गया है। क्योंकि नगर निगम को अपना मुख्यालय सहित अन्य भवनों को गिराना होगा।

राजेश भदौरिया ने वर्ष 2015 में डीआरडीई के 200 मीटर के दायरे में हुए अवैध निर्माण को लेकर जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 200 मीटर के दायरे में निर्माण प्रतिबंधित है, लेकिन बहुमंजिला भवन बनते जा रहे हैं। इससे डीआरडीई की सुरक्षा को खतरा हो गया है। हाईकोर्ट इस मामले में सख्त हो गया और वर्ष 2015 में आदेश दिया कि कोई नया निर्माण न हो सके। याचिका 5 साल से लंबित थी। हाईकोर्ट ने एक और अंतरिम आदेश जारी किया था कि शासकीय व अनुमति लेकर किए गए निर्माणों का क्या होगा यह फाइनल फैसले में तय किया जाएगा।

हाईकोर्ट के आदेश पर निर्माण सूचीबद्ध किए गए। नगर निगम ने 26 जुलाई 2018 को एक सर्वे करने के बाद 142 निर्माणों की सूची हाईकोर्ट को सौंपी थी। जिसमें शासकीय भवन, अनुमति लेकर बनाए गए निजी भवन, बिना अनुमति के बनाए गए भवनों की अलग-अलग सूची दी गई।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि वर्ष 2005 में रक्षा मंत्रालय की अधिसूचना जारी हुई थी। यह अधिसूचना उसी दिन से लागू है। इसलिए 2005 के बाद जितने भी शासकीय व निजी निर्माण किए गए हैं। चाहे उनके पास निर्माण की अनुमति है। सभी तोड़े जाएं।

-2005 के पहले अनुमति लेकर जितने भी निर्माण किए हैं। शासन चाहे तो उन्हें मुआवजा देकर तोड़ सकता है, लेकिन अवैध निर्माण तोड़ने होंगे।

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