देवास । मप्र के देवास जिले के आखिरी छोर पर बसे नेमावर में 35 परिवार के 190 लोगों ने संत समाज के सानिध्य में सनातन धर्म में वापसी की है। घर वापसी करने वाले सभी लोग घुमंतू समाज से जुड़े है। घर वापसी करने वाले लोगों का कहना है कि इनके पूर्वज पहले हिन्दू ही थे, पर किन्हीं कारणों से मुस्लिम बन गए थे।

​मां चामुंडा थीं कुलदेवी, घरों में होता था पूजन
नेमावर के अलावा जामनेर और आसपास के कुल 35 परिवारों के लोग इनमें शामिल हैं। सभी लोगों ने नेमावर में विधिवत मुंडन, नर्मदा स्नान, हवन, यज्ञोपवीत आदि क्रियाएं कर घरवापसी की। बताया जाता है कि करीब चार पीढ़ी पहले इन लोगों के पूर्वजों ने परिस्थितियों के चलते वर्ग विशेष को अपना लिया था। इनकी कुलदेवी चामुंडा थीं। घरों में कुलदेवी का पूजन होता था और उसी परपंरानुसार विवाह आदि रस्में संपन्न करते थे।

मदारी समाज के हैं सभी लोग
घरवापसी करने वाले सभी लोग नेमावर के पास ही जामनेर गांव में रह रहे थे। ये मदारी समाज के थे, जिनकी प्रवृत्ति घुमंतू होती है। नेमावर में नर्मदा तट पर सोमवार सुबह संतों के सान्निध्य में विधि-विधान से प्रक्रिया संपन्न हुई।

नेमावर और रतलाम के संत रहे उपस्थित
घर वापसी करने वाले लोगों में लगभग 55 पुरुष, 50 महिलाएं और शेष बच्चे शामिल हैं। इस मौके पर नेमावर के संत रामस्वरूप दास शास्त्री और सैलाना, रतलाम के संत आनंदगिरि महाराज उपस्थित थे। स्वधर्म में वापसी कर सभी लोगों ने खुशी जाहिर की।

हमारे खून में सनातन संस्कार
स्वधर्म वापसी पर अनुभव साझा करते हुए रामसिंह (पूर्व में मोहम्मद शाह) ने कहा कि हमारे पूर्वज भले ही परिस्थितिवश वर्ग विशेष के हो गए थे, पर हमारे रक्त में सनातन संस्कार ही प्रवाहित हो रहे हैं। आज अपने स्वधर्म में वापसी से हमें बहुत खुशी हो रही है।

​रतलाम में आंबा गांव के निवासी हैं लोग
संत आनंदगिरि महाराज ने बताया कि ये सभी लोग मूल रूप से रतलाम जिले के आम्बा गांव के निवासी हैं। इनके पूर्वज उसी गांव के निवासी थे। करीब चार पीढ़ी पहले इनके पूर्वजों ने धर्म परिवर्तन किया था। चार वर्ष पूर्व हमारे संपर्क में आए थे तो स्वधर्म वापसी की बात कही थी। तभी से प्रक्रिया चल रही थी। सोमवार को विधिवत रूप से स्वधर्म वापसी करवाई और नामकरण किया। ये सभी लोग घुमंतू मदारी समाज के हैं।