नई दिल्ली। भारत में बीते 50 वर्षों में लू से 17 हजार से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई है। यह आंकड़ा शीर्ष मौसमविदों के द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में सामने आया है। इसमें कहा गया है कि 1971 से 2019 के बीच देश में चरम मौसमी घटनाओं ( ईडब्ल्यूई ) से कुल 1,41,308 मौतें हुईं, जिनमें से 17,362 अकेले लू ( हीटवेव ) का शिकार हुए।
लू को ईडब्ल्यूई में से एक माना जाता है और बीते पांच दशकों में देश में इससे 706 हादसे हुए किए गए हैं। इन हादसों में सबसे ज्यादा मौतें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा में हुईं। यह शोध पत्र पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन, वैज्ञानिक कमलजीत रे, एसएस रे, आरके गिरी और एपी दिमरी ने इस साल की शुरुआत में लिखा था।
जब मैदानी इलाकों का वास्तविक तापमान 40 डिग्री और पहाड़ी क्षेत्रों में यह 30 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है तो हीटवेव का एलान किया जाता है। तटीय क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री और दूसरी जगहों पर 45 डिग्री हो तो हीटवेव चलती है।
लू का बड़ा कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसों और पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी माना जा रहा है। लू से शरीर में डिहाइड्रेशन, ऐंठन, थकान और ताप घात ( हीट स्ट्रोक ) हो जाता है।