राज्य सरकार के अब तक के साढ़े तेरह वर्ष के कार्यकाल में किसानों द्वारा आत्महत्या के सर्वाधिक मामले सीधी जिले में दर्ज किए गए हैं। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, जिले के 1022 किसानों ने किसी न किसी वजह से आत्महत्या कर ली। ज्यादातर में आर्थिक कमजोरी व खेती से निराशा रही। कुछ मामलों में मौत के कारणों का खुलासा पुलिस नहीं कर सकी है।

दरअलस, मंदसौर की घटना को लेकर सरकार के खिलाफ विधानसभा सत्र में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने बुधवार को स्थगन प्रस्ताव रखा। इस बीच सीआईडी पीएचक्यू द्वारा किसानों की आत्महत्या के आंकड़े प्रस्तुत किए गए। इसमें उक्त तथ्य की पुष्टि हुई है। नेता प्रतिपक्ष का गृह जिला किसानों की आत्महत्याओं के मामले में टॉप पर है।

तीसरे क्रम पर सतना
बताते चलें कि प्रदेश में अन्य जिलों की अपेक्षा सीधी के बाद रीवा व सतना के किसानों ने सबसे ज्यादा आत्महत्याएं कीं हैं। सीआईडी के आंकड़ों के मुताबिक, सीधी के बाद दूसरे नंबर पर रीवा है। जहां 13 वर्षों में 996 किसानों ने मौत को गले लगाया। तीसरे क्रम पर सतना जिले के 804 किसानों ने आत्महत्या की।

33 हजार किसानों पर 224 करोड़ का कर्ज
किसानों की आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण खेती के लिए कर्ज लेना व खेती नष्ट होनेे पर न चुका पाना है। सीधी के 33 हजार किसान तीन लाख या उससे कम राशि के कर्जदार हैं। 33 हजार 621 किसानों पर 2 अरब 24 करोड़ 23 लाख रुपए का कर्ज है।

दक्षिणी छोर में अधिक मौतें
सूत्रों अनुसार, कैमोर पहाड़ के नीचे या जिले की उत्तरी सीमा के किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति दक्षिणी छोर के किसानों की अपेक्षा में कम है। कारण कि, उत्तरी छोर में बाणसागर नहर होने के कारण फसलें सामान्यत: अच्छी हैं। जबकि, दक्षिणी छोर में सिंचाई के साधनों का अभाव हैं। पथरीली मिट्टी होने के कारण खेती में लगातार घाटा होने से किसान हताशा में खुदकुशी कर रहे हैं।

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