जबलपुर। दीपावली आते ही टिकट की दलाली का खेल भी शुरू हो गया है। इसका अंदेशा पहले से होने के कारण आरपीएफ न केवल जबलपुर, बल्कि आस-पास के 10 शहरों पर भी नजर बनाए हुए है। इसका फायदा भी रविवार को देखने को मिला। आरपीएफ ने शहर से अब तक के सबसे बड़े टिकट दलाल को पकड़ने में सफलता हासिल की है।
आरपीएफ के मुताबिक राइट टाउन स्थित कृष्णा ट्रैवेल्स के संचालक प्रदीप यादव ने अपने सहयोगी मदनलाल की मदद से आईआरसीटीसी की 13 फर्जी आईडी बनाई और इनसे तकरीबन 720 ई-टिकट बुक कर डाली। इन टिकटों की कीमत 15 लाख रुपए बताई जा रही है। जांच अधिकारियों ने ट्रैवेल्स के ऑफिस से कम्प्यूटर, प्रिंटर जब्त करते हुए प्रदीप और उनके सहयोगी के खिलाफ रेल अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया है।
13 जी-मेल आईडी से चल रहा था दलाली का खेल
आरपीएफ के पोस्ट प्रभारी वीरेन्द्र सिंह ने बताया कि प्रदीप और मदनलाल ने 13 जी-मेल की फर्जी आईडी की मदद से आईआरसीटीसी की फेक आईडी बनाई। इनसे वे तत्काल से लेकर सामान्य टिकट तक बुक करते थे। कम्प्यूटर की हार्डडिस्ट में तकरीबन 720 टिकट मिलीं हैं। इन सभी टिकटों के प्रिंट निकालकर जांच की जा रही है। जांच में और ई-टिकट मिलने की आशंका है। जिसके बाद आंकड़ा 20 लाख रुपए के पार जा सकता है।
कई शहरों के टिकट दलालों से जुड़े तार
आरपीएफ के मुताबिक कृष्णा ट्रैवेल्स से कई और ट्रैवेल्स जुड़े हैं, जो जबलपुर, कटनी, सागर, सतना, भोपाल, इंदौर से लेकर नागपुर, मुंबई, पटना व अन्य बड़े शहरों में काम कर रहे हैं। दिवाली के वक्त ट्रेनों में लंबी वेटिंग के कारण पैसेंजर इनके झांसे में आसानी से आ जाते हैं। उन्हें कन्फर्म टिकट देने का दावा कर एजेंट इनसे कुल किराए की कीमत से तीन से चार गुना ज्यादा रकम वसूलते हैं। सबसे ज्यादा महाराष्ट्र और यूपी-बिहार की ओर जाने वाली ट्रेनों में टिकट का खेल होता है। इसमें रेलवे के कई कर्मचारी भी जुड़े हैं। जांच में उनके नाम भी सामने आ सकते हैं।
संदीप, छोटू और दीपक के नाम पर बनी मेल आईडी
आरपीएफ के एएसआई आईएन बघेल, लोकेश पटेल, अमित सिंह, संजीव खोसला और शिवराम ने ट्रैवेल्स एजेंसी में छापामार कार्रवाई करते हुए वहां रखे कम्प्यूटर की जांच की तो उसमें अलग-अलग नाम से 13 जी-मेल आईडी यूज होती मिलीं। इनमें सबसे ज्यादा आईडी दीपक, छोटू, कैलाश, रिंकू और संदीप के नाम पर बनी हैं। इनमें दी गई जानकारी भी फर्जी है। आरपीएफ अब जांच कर रही है कि अक्टूबर से फरवरी 2019 तक 4 माह के लिए कितनी ई-टिकट बनी, ताकि इन्हें रद्द कराकर इनका किराया रेलवे अपने खाते में जमा कर सके।