भोपाल। मेडिकल और डेंटल काॅलेज में बाहरी छात्रों को फर्जी तरीके से मूल निवासी बनाकर प्रवेश देने के मामले में मप्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने करारा झटका दिया है। कोर्ट ने जबलपुर हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ लगाई गई राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 10 दिन के भीतर जबलपुर हाइकोर्ट के आदेश को लागू करने के निर्देश भी दिया है। दरअसल, मध्यप्रदेश के मेडिकल और डेंटल काॅलेज में प्रदेश के बाहर के कई छात्र शामिल हुए थे, जो मध्यप्रदेश के मूल निवासी नहीं थे। इन छात्रों ने मेरिट सूची में स्थान हासिल करने के बाद मप्र में एडमिशन लेने के लिए फर्जी मूल निवासी प्रमाण पत्र पेश किए थे। ये मामला कोर्ट में पहुंचा, तो मप्र हाइकोर्ट जबलपुर ने फर्जी मूल निवासी के आधार पर प्रवेश पाने वाले यूपी और छत्तीसगढ़ के आवेदकों को मेरिट सूची से बाहर करने का आदेश दिया था।
इस सूची में दोनों राज्यों के करीब 114 उम्मीदवार थे, जिन्हें हाइकोर्ट ने बाहर करने का आदेश दिया था। इसके अलावा हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को बची हुई सीटों पर दोबारा मेरिट लिस्ट बनाने का आदेश देते हुए काउंसलिंग पर रोक लगा दी थी। मप्र सरकार ने हाइकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सोमवार को सुनवाई करते हुए मप्र सरकार की याचिका खारिज करते हुए हाइकोर्ट जबलपुर का निर्णय यथावत रखा है और मप्र सरकार को 10 दिन में जबलपुर हाइकोर्ट के आदेश को लागू करने को कहा है।
इस मामले में दूसरे राज्यों के आवेदकों ने फर्जी तरीके से मप्र का मूल निवासी प्रमाण पत्र बनाकर एडमिशन ले लिया था। इस आधार पर हाइकोर्ट जबलपुर में याचिका लगायी गयी थी। हाइकोर्ट ने सुनवाई करते हुए फिर से नयी मेरिट सूची तैयार करने के आदेश दिया था।
हाइकोर्ट के आदेश के बाद संचालनालय चिकित्सा शिक्षा ने दूसरे चरण की एडमिशन प्रक्रिया रोक दी थी, जबकि मेडिकल और डेंटल में सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त तक की तारीख तय की थी। इस मामले में पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट ने मप्र के मूल निवासी के पक्ष में आदेश दिया था, लेकिन मप्र सरकार ने मौजूदा काउंसलिंग के लिए मूल निवासी की परिभाषा परिवर्तित कर दी थी। मप्र सरकार के इस कदम के कारण यूपी और छत्तीसगढ़ के करीब 114 छात्रों ने फर्जी निवास प्रमाण पत्र बनवाकर एडमिशन भी ले लिया था।