ग्वालियर। जीवन में आने वाले संघर्षों से न घबराएं। ये संघर्ष ही हैं, जो आपके जीवन को महकाते है। आपका महत्व बताते हैं और आपको भीड़ से बाहर निकालकर स्थापित करते हैं। गुलाब कांटों से घिरा रहता है, लेकिन वह सदैव दूसरों को मुस्कुराहट रूपी महक देता है। उसी तरह नर को संघर्षों, विपरीत परिस्थितियों में भी दूसरों के प्रति दया, प्रेम और करूणा के भाव अपनाने चाहिए, तभी जीवनरूपी बगिया में वह अपनी पहचान स्थापित कर सकता है। यहां आकर हर कोई आनंद की अनुभूति करेगा। यह बात राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने आज शुक्रवार को तानसेन नगर स्थित न्यू कालोनी में धर्मचर्चा में व्यक्त्त किए! इस मौके पर मुनिश्री विजयेश सागर महाराज मोजूद थे!

मुनिश्री ने कहा कि जो हमारे करीब आएगा उसका जीवन भी इंसानियत की महक पाकर सुगंधित हो ही जाएगा। दुखों से घिरे लोगों के प्रति सेवा का भाव रखें। सदाचारों से परिपूर्ण आदर्श जीवन जिएं। अपने से पूर्ण जीवन को भगवान भक्ति से इस प्रकार परिपूर्ण करें कि आने वाले कई युगों तक हमारे मानवीय मूल्यों और आदर्शों की कीर्ति पताका फहराती ही रहे। जैसे कि भगवान महावीर स्वामी ने अहिंसा का बिगुल फूंका वह आज तक पूरे जहां में अहिंसा की लहर चली आ रही है। ऐसा ही अनुसरण जीवों को करना चाहिए। धर्म से यश मिलता है।

मन में दया, करूणा और त्याग की भावना रखकर हमें जन्म से ही नहीं कर्म से मनुष्य बनना है, हमें उत्तम कुल, उत्तम शरीर मिला है उस पर घमंड नहीं करते हुए गर्व करना चाहिए। षाश्वत सुख पाने के लिए त्याग की भावना रखनी चाहिए। यह शरीर हमें उधार में मिला है और आत्मा हमारी मूल है। व्यक्ति ऊधान का तो ध्यान रखता है। उसका सजाने, संवारने में समय लगता है, लेकिन जो हमारी मूल पूंजी है आत्मा उसका ध्यान नहीं रखता है।

मुनिश्री ने कहाकि इंसान को परमात्मा ने कर्म करने के लिए अवसर दिया है, कर्म से ही पाप और पुण्य तय होते हैं। अच्छे कर्म से पुण्य और बुरे कर्म से पाप मिलेगा। पाप और पुण्य इस जन्म से लेकर अगले जन्म तक साथ रहते हैं। मनुष्य जीवन में अहिंसा का प्रयोग नहीं करता है और चाहता है कि देश भर से घृणा व द्वेश खत्म हो जाए, यह कैसे संभव हो सकता है।

जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज के सानिध्य में भगवान शांतिनाथ का अभिषेक अजय जैन विजय जैन ने किया! भगवन की पूजन अष्टद्रव से की गई! मुनिश्री की आहारचर्या हुई!

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