भोपाल। मध्य प्रदेश को अस्तित्व में आए 62 वर्ष हो चुके हैं। इनमें से 40 साल कांग्रेस की सरकार रही है। प्रदेश में पंद्रहवी विधानसभा के लिए 28 नवंबर को मतदान होने हैं। उससे पहले सत्तासीन भाजपा ने लगातार कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। हाल ही में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि ‘कांग्रेस पार्टी बिना दुल्हे की बारत की तरह है’। उनका तंज कांग्रेस द्वारा सीएम उम्मीदवार की घोषणा नहीं करने पर था। इसी तरह सीएम शिवराज भी कई बार कांग्रेस को इस मुद्दे पर घेरते रहे हैं। लेकिन इतिहास में झांका जाए तो पता चलेगा कांग्रेस ने कभी मुख्यमंत्री के चेहरी की घोषणा विधानसभा चुनाव में नहीं की। उसके बावजूद कांग्रेस ने एमपी में 40 साल शासन किया।

मुख्यमंत्री ने सीधी में कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए हमला किया था कि कांग्रेस मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने में नाकाम रही है। कांग्रेस एक कंफ्यूज्ड पार्टी है। पार्टी ये तय नहीं कर पा रही है उसका सेनापति कौन होगा। अब तो यह कौन बनेगा करोड़पति में पूछे जाने वाला सवाल बन गया है।

कभी नहीं किया सीएम कैंडिडेट घोषित

तथ्य यह है कि कांग्रेस ने कभी भी किसी भी प्रत्याशी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया। एमपी में 1956 से चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई है तब से लेकर आज तक कांग्रेस ने कभी उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है। इस तरह कांग्रेस की बारात हमेशा बिना दुल्हे के रही है। यहां तक कि मौजूदा सीएम को भी भविष्य के सीएम उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया। और इसके बावजूद, कांग्रेस ने राज्य के 62 वर्षों में से 40 वर्षों के लिए राज्य पर शासन किया।

ऐसा रहा इतिहास

मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल थे। 16 अक्टूबर 1956 को मध्यप्रांत की राजधानी नागपुर में एक बैठक हुई। पंडित शुक्ल को सर्वसम्मति से नेता चुना गया और वो नए मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। वह इसलिए क्योकिं आजादी से पहले वह मध्यप्रांत के मुख्यमंत्री थे। हालांकि, उनकी पारी लंबी नहीं चल सकी और 31 दिसंबर, 1956 को शुक्ल की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। उनके बाद डॉ कैलाश नाथ काटजू को मुख्यमत्री बनाया गया। 1957 फिर से चुनाव हुआ और काटजू को दोबारा मुख्यमंत्री चुना गया। लेकिन तब भी कांग्रेस ने चुनाव से पहले उनको मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा नहीं की गई थी।

1962 में डीपी मिश्रा को चुना गया

1962 में हुए चुनाव में काटजू हार गए थे। पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र और बाबू तख्तमल जैन ने मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश की। कांग्रेस संसदीय बोर्ड ने बाबू जगजीवन राम से मुलाकात की। वह उस समय एआईसीसी पर्यवेक्षक थे। पंडित मिश्रा को जैन से अधिक वोट मिले थे। इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई। 1967 में भी कांग्रेस ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया था। लेकनि जीत के बाद पंडित मिश्रा को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1972 में भी कांग्रेस ने चुनाव से पहले अपनी परंपरा को बरकरार रखते हुए मुख्यमंत्री पद के लिए किसी भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की थी। बाद में सत्ता में आने के बाद पीसी सेठी को मुख्यमंत्री बनाया गया था।

उमा भारती अपवाद

मध्यप्रदेश में भाजपा गला फाड़ कर कांग्रेस पर मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं करने पर निशाना साधती रही है। लेकिन इतिहास कहता है कि भाजपा ने भी 2003 के अलावा चुनाव से पहले कभी सीएम के चेहरे का ऐलान नहीं किया। 2003 में भाजपा ने ऐलान किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। हालांकि, शिवराज सिंह चौहान को भाजपा ने कभी भी ओपचारिक तौर पर मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित नहीं किया। हालांकि, इस बार अमित शाह ने शिवराज को ही मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया है।

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