ग्वालियर-पुरुषार्थ और भाग्य को बदलने का नाम धर्म है। पुरुषार्थ व धर्म के द्वारा संतों, भगवंतों की आराधना से कर्मों की मारी मैना सुंदरी नारी को अपने पति को कुष्ठ रोग दूर कर श्रीपाल की काया को कंचन के समान बना दिया और अपने पिता के अभिशाप को दूर कर दिया। मैना सुंदरी की भक्ति ही थी, जिसने कई लोगों को कोड़ से मुक्त कर दिया। इससे सीख मिलती है कि व्यक्ति को अपने कर्मों का फल स्वयं ही भोगना पड़ता है। यदि वास्तव में मैना सुंदरी की तरह हर व्यक्ति को भगवान के ऊपर ऐसी श्रद्धा भक्ति हो जाए, तो बड़े से बड़ा बिमारी भी ठीक हो जाए। यह बात उपग्वालियर लोहमंडी लाला गोकुल जैन मदिंर में अयोजित सिद्धचक्र महामंडल विधान के आज तीसरे दिन मंगलवार को धर्मसभा में प्रतिष्ठाचार्य शशिकांत शास्त्री ने कही।

उन्होने ने कहा कि हमें आठ गुणों की प्राप्ति व आठ कर्मों के नाश के लिए सिद्ध परमेष्ठी के आठ गुणों की आराधना करना चाहिए। सिद्धचक्र आराधना हमें संसार चक्र को समाप्त कर सिद्ध बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है। हम आज दुकान, मकान परिवार के चक्कर लगाते हैं, परंतु संतों, भगवतों से ज्ञान दर्शन और चरित्र पाने उनके चक्कर नहीं लगाते। अगर हमने पाप कर्मों को करने में समय बर्बाद कर दिया तो हम धन चक्कर बन जाएंगे। हमें धर्म के चक्कर लगाकर धर्म को भीतर बसाने का प्रयास करना है। मंदिर समिति के अध्यक्ष पदमचंद जैन, महामंत्री देवेद्र जैन, दिलीप जैन, नवरंग जैन, राहुल जैन, अलोक जैन, प्रवक्ता सचिन जैन आदि मौजूद थे।

  जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि सिद्धचक्र महामंडल विधान के प्रतिष्ठाचार्य शशिकांत शास्त्री ने मंत्रउच्चारण के साथ सौधर्म इंद्रा पदमचंद जैन सहित इंद्रो ने चारों कोणों पर खड़े हुए भगवान जिनेंद्र देव के ऊपर कलशो से अभिषेक जयकारों के साथ किए। भगवान पार्श्वनाथ की शांति धारा करने का सौभाग्य राजेश कुमार पदमचंद जैन परिवार ने की। अभिषेक के उपरांत भगवान की महाआरती महिलाओ ने संगीतमय भक्ति मे की। 
 
      इस विधान में श्रीपाल और मैना सुदंरी राहुल जैन प्रियंका जैन को सौभाग्य प्राप्त हुआ। वही इंद्रा-इंद्राणियो ने पीले वस्त्र धारण कर सिर पर मुकुट गले में माला पहनकर शुभम जैन संगीतकर के भजनो पर भक्ति भाव के साथ पूजा आर्चन कर सिध्दप्रभू की आराधन भक्ति के 32 महाअर्घ जिनेन्द्र देव के सामने समर्पित किए गए।

   

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