सोनागिर–: भारत की संस्कृति हाथ जोड़कर जीने की संस्कृति है! हाथ मिलाने की नहीं ,क्योंकि हाथ जोड़ने से दो दिल भी आपस में जुड़ जाते हैं। हाथ मिलाना यानी सामने वाले की ताकत को नापना है हमने दिल जीतना सीखा है जमीन के टुकड़े को नहीं। यह विचार क्रांतिवीर मुनिश्री प्रतीक सागर जी महाराज ने सोनागिर स्थित आचार्य पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही!
मुनिश्री ने कहा कि अगर भारत वासियों ने पहले ही इस भारत की संस्कृति को अपना लिया होता तो करोना वायरस रूपी महामारी का सामना नहीं करना पड़ता। आज सारा विश्व उसी भारत की संस्कृति को अपनाकर उस महामारी से अपनी रक्षा और सुरक्षा कर रहा है संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर हमने स्वयं के लिए मौत को निमंत्रण दिया है।
मुनि श्री ने कहा अगर हम पाश्चात्य संस्कृति का कभी अनुसरण नहीं करेंगे तो आगे भी हम किसी भी प्रकार की प्राणघातक वायरस से बचे रहेंगे ऋषि और मुनियों की संस्कृति हमारे देश की आदर्श संस्कृति है जिसका हमें यथासंभव पालन करना चाहिए और अपने जीवन को सुरक्षित करना चाहिए जो लोग भारतीय संस्कृति और संस्कारों का मजाक बनाते हैं उनकी जिंदगी 1 दिन स्वयं मजाक बन कर रह जाती है जब तक वह समझेंगे तब तक समय हाथ से निकल चुका होगा । मैं मुनि प्रतीक सागर देश की युवा पीढ़ी को इस देश का संत होने के नाते आव्हान करता हूं कि हमें अपनी संस्कृति को बचाने के लिए जागृत होने की आवश्यकता है। विकृति को अपने देश की भूमि से खदेड़ने का समय आ चुका है क्योंकि वह दिन दूर नहीं होगा हमारे घरों में डिनर सेट होगा सोफा सेट होगा डायमंड सेट होगा मगर दिमाग अपसेट हो जाएगा! दिमाग अपसेट हो उसके पहले हमें शांति और सदभावना का मंगलाचरण कर लेना चाहिए!