नई दिल्ली/भोपाल ! देश में जारी औद्योगीकरण और विकास की चाहत में नदियोंं का अस्तित्व ही संकट में पड़ता जा रहा है। नदियों में लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है, कारखानों के गंदे पानी से लेकर शहरों की गंदगी सीधे नदियों में मिल रही है, इसके चलते देश की 100 नदियों का पानी शहरों के करीब आते-आते आचमन के लायक भी नहीं बचा है।
मैंने उत्तर और दक्षिण की 100 नदियों को करीब से देखा है, आलम यह है कि किसी भी शहर के करीब से निकली इन नदियों का पानी पीने लायक तो नहीं ही है, इस पानी से स्नान या कुल्ला-आचमन तक नहीं किया जा सकता : राजेन्द्र सिंह
पानी के प्रति लोगों में जागृति लाने और नदियों को बचाने की मुहिम में लगे मैगसेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह ने कहा, मैंने उत्तर और दक्षिण की 100 नदियों को करीब से देखा है, आलम यह है कि किसी भी शहर के करीब से निकली इन नदियों का पानी पीने लायक तो नहीं ही है, इस पानी से स्नान या कुल्ला-आचमन तक नहीं किया जा सकता। भारत में नदियां आस्था और श्रद्धा का प्रतीक हैं, यही कारण है कि विशेष धार्मिक अवसरों पर श्रद्धालु इन नदियों में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। मगर गंगा, यमुना, नर्मदा, चंबल, बेतवा, क्षिप्रा से लेकर छोटी नदियां ही क्यों न हों, सभी पर औद्योगीकरण का दुष्प्रभाव पड़ा है। रासायनिक कचरे बहाए जाने के कारण नदियों की सेहत लगातार बिगड़ रही है। सिंह ने कहा, नदियों के किनारों की हरियाली खत्म होती जा रही है, कटाव बढ़ रहा है, शहरों की गंदगी सीधे तौर पर नदियों में मिल रही है। इतना ही नहीं, कारखानों का अपशिष्ट भी नदियों तक बगैर किसी बाधा के पहुंच रहा है। सरकारें दावा तो बहुत कुछ करती हैं, मगर नदियों को देखकर वादे बेमानी नजर आते हैं।Ó देश में नदियां बचाने और पानी को संरक्षित व सुरक्षित रखने के मकसद से कई संगठनों से जुड़े लोगों ने ‘जल जन जोड़ोÓ अभियान चलाया है।

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