नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि चीफ जस्टिस ही मास्टर ऑफ रोस्टर हैं। वे ‘बराबर में सबसे पहले’ हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी वकील शांति भूषण की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने भूषण की अर्जी पर दखल देने से इनकार कर दिया। हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि कोई भी व्यवस्था अचूक नहीं होती। न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में सुधार की हमेशा गुंजाइश रहेगी।
जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की बेंच याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अपने फैसले में जस्टिस सीकरी ने कहा, “इस बात में कोई विवाद नहीं है कि चीफ जस्टिस के पास ही अलग-अलग बेंचों को मामले आवंटित करने का अधिकार है। यह विशेष कर्तव्य उन्हीं का है। वे सबसे वरिष्ठ होते हैं। उनके पास अदालत के प्रशासनिक कामकाज का नेतृत्व करने का अधिकार है। कौन-सा मामला किस बेंच के पास जाएगा, यह तय करने का विशेषाधिकार भी चीफ जस्टिस का ही है।” जस्टिस सीकरी के विचारों पर जस्टिस भूषण ने भी सहमति जताई। इससे पहले नवंबर 2017 में भी संविधान पीठ ने कहा था कि चीफ जस्टिस ही मास्टर ऑफ रोस्टर हैं।
न्यायपालिका की परंपरा से छेड़छाड़ ठीक नहीं : जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि न्यायपालिका के बारे में लोगों के मन में अगर धारणा कमजोर होती है तो यह न्यायिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा है। वहीं, जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की समृद्ध परंपरा रही है। समय-समय पर यह सही साबित हुई है। लिहाजा, इसमें छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए।
जनवरी में चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी : जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केसों के बंटवारे का मुद्दा उठाया था। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसके बाद अप्रैल में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में उन्होंने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) की प्रशासनिक शक्तियों के बारे में जानकारी मांगी थी। उन्होंने ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ के फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि पसंदीदा बेंचों को सुनवाई के लिए केस आवंटित किए जा रहे हैं। इस तरह नियमों को दरकिनार किया जा रहा है।