सागर। मध्यप्रदेश के सागर संभाग के छतरपुर जिले के नैनागिर तीर्थ में रविवार को जैन साध्वी की धर्म के प्रति अटूट निष्ठा और समर्पण का अनूठा मामला सामने आया, जिसमें उनका समाधि मरण हो गया। शुक्रवार रात आर्यिका सुनयमति माताजी सामायिक (साधना) कर रही थीं। इसी दौरान सिगड़ी की आग उनके वस्त्रों तक पहुंच गई। इससे वे करीब 90 प्रतिशत जल गई।
उन्हें फौरन शहर के भाग्योदय अस्पताल लाया गया। उन्होंने समाधि लेने की इच्छा जताई और रविवार सुबह उनका समाधि मरण हो गया। जानकारी के मुताबिक तय नियम के तहत वे शुक्रवार शाम साधना के लिए अपने कक्ष में चटाई लपेट कर बैठ गईं। वे 45 से 50 मिनट की साधना कर चुकी थीं, तभी एक श्राविका ने सिगडी में कुछ अंगारे कमरे के बाहर रख दिए ताकि साधना के बाद माताजी की सेवा कर सके।

तभी किसी जरूरी काम से वह सिगड़ी छोड कर वहां से चली गई। तभी तेज हवा से पर्दे ने आग पकड ली और साध्वी की चटाई भी जलने लगी। चूंकि उनकी साधना की अवधि बची हुई थी इसलिए वे वहां से नहीं हटीं। कुछ ही देर में आग उनके कपड़ों से गले तक पहुंच गई। चंद मिनटों बाद जैसे ही उनकी साधना की अवधि पूरी हुई, उन्होंने चटाई को शरीर से अलग करने का प्रयास किया। इस दौरान उनकी खाल भी शरीर से अलग हो गई। तब तक वहां पहुंचे श्रावकों ने उन्हें संभाला और अस्पताल ले आए।

उन्होंने अस्पताल में समाधि की इच्छा जताई और करीब 30 घंटे बाद उन्होंने समाधि ली। उनका डोला रविवार सुबह भाग्योदय के सामने की जमीन पर ले जाया गया। यहां मुक्तिधाम में विनयांजलि सभा में लोगों ने आर्यिका सुनयमति माताजी के जीवन पर आधारित कई दृष्टांत सुनाए।

मुनिसेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया कि आर्यिका सुनयमति माताजी ने 16 अगस्त 1980 को आचार्यश्री विद्यासागर महाराज से मुक्तागिरी में ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। 6 जून 1997 को उन्हें आर्यिका दीक्षा रेवा तट नेमावर में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने दी थी।। शुरुआत में वे आर्यिका आलोकमति माताजी का संघ में थीं, बाद में स्वास्थ्य अनुकूल नहीं होने से वे व्हील चेयर पर चलने लगी थीं।

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