भोपाल।  मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में अंग्रेजी में प्राप्त अंक को अंतिम गणना जोड़े जाने का विरोध करते हुए केन्द्र से अंग्रेजी के संदर्भ में केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा में की गई अनावश्यक तथा जनविरोधी समस्याओं को तत्काल समाप्त करने आग्रह किया है। श्री चौहान ने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को लिखे अपने पत्र में कहा कि अंग्रजी में प्राप्त अंक अंतिम गणना में जोड़ने से भारत के ग्रामीण एवं आदिवासी अंचलों के युवाओं की संभावनाओं पर ही नहीं बल्कि शहरी मलिन बस्तियों व शहरी गरीबों एवं मध्यवर्गीय युवाओं के मनोबल और भविष्य पर भी निर्मम आघात हुआ है।

श्री चौहान ने कहा कि पिछले कई दशकों में इन्हीं वर्गों से बहुत से युवा अपनी जबर्दस्त प्रतिभा के चलते भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा, वन सेवा, राजस्व सेवा व अन्य सम्बद्ध सेवाओं में भर्ती होते रहे हैं। इन अधिकारियों के चलते प्रशासन में राज्य और समाज के बीच चला आने वाला अलगाव व परायापन दूर हुआ तथा शासन-तंत्र के प्रति लोगों के मन में आत्मीयता और विश्वास का भाव पैदा हुआ। ये युवा जिस परिवेश से निकले, वहाँ से दूसरे युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत बन गए। ये युवा जहाँ पदस्थ हुए, वहाँ उन्होंने आम आदमी में एक गहरा मनोवैज्ञानिक आश्वासन उपलब्ध कराया। उन्होंने प्रधानमंत्री से सवाल किया कि क्या यह स्थिति आगे जारी रखने योग्य नहीं रही है।

मुख्यमंत्री ने आगे लिखा कि व्यवस्था की कमजोरी से भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अंग्रेजी माध्यम की उच्चस्तरीय शैक्षणिक संस्थाएं कायम नहीं कर पाए। लेकिन इस तरह के निणयों के जरिए अपनी अक्षमताओं का दंड उन मासूम युवाओं को दे रहे हैं जो अपने परिवेश की अपर्याप्तताओं के लिए जिम्मेदार नहीं है बल्कि उनके शिकार हैं। उन्होंने कहा कि यह उम्मीद करना ज्यादती है कि ऐसे बच्चे विदेशों से पढ़कर लौटे अभिजात परिवार के बच्चों की अंग्रेजी से मुकाबला कर सकेंगे। यह कहना भी ठीक नहीं है कि कुल 2075 अंकों में से मात्र 100 अंक एक आंशिक भूमिका का निर्वाह करेंगे, क्योंकि यह एक प्रतियोगी परीक्षा है जिसमें एक-एक अंक पर तीन-तीन प्रत्याशी खड़े रहते हैं। ऐसे में ये 100 अंक निर्णायक भूमिका अदा करने जा रहे हैं। वैसे भी पहले की व्यवस्था में भी अर्हताकारी अंक प्राप्त करने का प्रावधान था, जिससे इस भाषा में न्यूनतम दक्षता का परीक्षण किया जाता रहा है।

मुख्यमंत्री ने लिखा कि एक ज्यादा से ज्यादा वैश्विक होते जा रहे समय में अंग्रेजी ज्ञान के प्रति बढ़ती हुई चिन्ता के संबध में मुख्यमंत्री ने कहा कि फिर भी जिन सीमाओं के भीतर हमारे ग्रामीण तथा अधिकांश शहरी युवाओं को तालीम लेनी पड़ती है, उन सीमाओं का ध्यान न रखने से ये युवा पूर्णतः नुकसान में रहेंगे। यह प्रतियोगी परीक्षा जिसे ज्ञान और प्रवृत्ति की परीक्षा लेती है, वह भाषा-निर्भर नहीं है। प्रतियोगी परीक्षा से चुने जाने के बाद पूर्व में भी विभिन्न तरह के कौशलों का विकास प्रशिक्षण द्वारा होता रहा है। इसमें भाषाई कौशल भी शामिल रहे हैं। जिस स्तर पर की प्रतिभा के लोग इन सेवाओं में चुने जाते हैं, उसे देखते हुए उन पर यह अविश्वास उचित नहीं लगता कि वे बाद में अंग्रेजी भाषा के परवर्ती ज्ञान की रणनीति तर्क संगत नहीं है। इस निर्णय से यह सिद्ध होता है कि अंग्रेजी को एकाधिकारी स्थान दिया जा रहा है। इससे राजभाषा हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति हमारे परिवारों में अरूचि का वातावरण पैदा होगा। प्रश्न शासकीय सेवाओं में युवाओं के प्रवेश का ही नही है बल्कि इन भाषाओं के सहवर्ती विकास के दायित्व को निभाने का भी है। यह कहना भी ठीक नहीं है कि चूंकि ये सेवाएं अखिल भारतीय हैं, इसलिये क्षेत्रीय भाषाओं की परीक्षा का कोई औचित्य नहीं है। यह बात शायद कहीं इस पूर्वाग्रह पर भी आधारित है कि हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं की कोई एकतामूलक भूमिका नहीं है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सिविल सेवाओं को आजादी के बाद से लगातार भारतीय समाज की प्रतिनिधिक सेवा बनाने की कोशिश की जाती रही है और उसी का परिणाम यह रहा है कि देश के अत्यंत विपन्न परिवारों से युवा इन सेवाओं में आ पाए। लेकिन अब इस ऐतिहासिक प्रक्रिया को उलट दिया गया है। अभी जारी की गई अधिसूचना अंग्रेजी की जिस सर्वसत्ता को मान्यता देती है, वह इन सेवाओं को ज्यादा से ज्यादा गैर प्रतिनिधिक बनाएगी। जब प्रारंभिक परीक्षा में अंग्रेजी के हित में बदलाव किए गए तो उससे समाज के वंचित एवं निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के प्रतिनिधित्व में कमी आई। अब मुख्य परीक्षा में बदलाव किया जा रहा है। इस क्रम से अगला कदम अब साक्षात्कार के माध्यम में बदलाव का होने की आशंका बढ़ गई है। इससे इन सेवाओं की प्रतिनिधिकता और भी कम हो जाएगी।

मुख्यमंत्री ने ऐसे परिवर्तन एकतरफा तरीके से करने को दुखद बताते हुए कह कि इनमें राज्य सरकारों से विमर्श का शिष्टाचार तक नहीं निभाया जा रहा है। अंग्रेजी का न केवल भाषा बल्कि ज्ञान के एक बिपुल भंडार तक पहुँचने के एक साधन के रूप में जितना महत्व है, हिन्दी तथा अन्य भारतीय जन-भाषाओं का जन-जन तक पहुँचने में उतना ही महत्व है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी पर अनुवर्ती प्रशिक्षणों व शासकीय कार्य व्यवहार के क्रम में अधिकार प्राप्त किया जाना सहज संभव है।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *